पीपल वृक्ष का पूजन क्यों ?


तैत्तरीय संहिता के अनुसार सात पवित्र वृक्षों में से पीपल भी एक है । ब्रह्मवैवर्तपुराण में पीपल की पवित्रता के संदर्भ में काफी कुछ वर्णित है ।
स्कंद पुराण के अनुसार पीपल की जड़ में विष्णु , तने में केशव , शाखाओं में नारायण , पत्तों में भगवान हरि और फल में सब देवताओं के साथ भगवान अच्युत का निवास है । 

मूले विष्णुः स्थितो नित्यं स्कंधे केशव एव च । 
नारायणस्तु शाखासु पत्रेषु भगवान हरिः ॥
फलेऽच्युतो संदेहः सर्व देवै समन्वितः । 
स एव विष्णुर्द्रुम एव मूर्तो महात्मभिः सेवति पुण्यमूलः ॥ 
यस्याश्रयः पापसहस्रहंता भवेन्नृणां कामदुघो गुणादियः ॥
 
( स्कंदपुराण - नागर खंड -247 / 41-42-43 )
 
 

श्रीमद्भगवद् गीता के अनुसार अर्जुन को उपदेश देते हुए स्वयं भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन ! वृक्षों में मैं पीपल ( अश्वत्थ ) का वृक्ष हूं । ' अश्वत्थः सर्व वृक्षाणाम् ' ( श्रीमद्भगवद् गीता अध्याय 10 श्लोक 26 ) 

पद्मपुराण के अनुसार पीपल की परिक्रमा करके प्रणाम करने से आयु बढ़ती है । पीपल के वृक्ष में जल सींचने से प्राणी को सहज ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है शनि की साढ़ेसाती और ढैया काल में पीपल की परिक्रमा और पूजन करने से शनि का प्रकोप कम हो जाता है । धर्मशास्त्रों के अनुसार पीपल में पितरों व तीर्थों का वास है । यही कारण है कि मुंडन आदि धार्मिक संस्कार पीपल के वृक्ष के नीचे ही सम्पन्न कराए जाते हैं । 


             वैज्ञानिक अनुसंधानों के अनुसार पीपल का वृक्ष दिन - रात पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन का निष्कासन करता रहता है । ऑक्सीजन से ही संसार के प्राणियों में प्राणों का संचार होता है । वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर भी पीपल का वृक्ष श्रीविष्णु का ही स्वरूप है । पीपल के वृक्ष की छाया शीत ऋतु में उष्णता और ग्रीष्म ऋतु में शीतलता देती है । इसके पत्तों से स्पर्शित होकर प्रवाहित होने वाली वायु और पत्तों के परस्पर टकराने पर उत्पन्न होने वाली विशिष्ट ध्वनि में अनेक रोगों के संक्रामक कीटाणुओं को नष्ट करने की क्षमता है । 

आयुर्वेद के अनुसार पीपल वृक्ष की जड़ , छाल और इसके पत्तों एवं फलों से प्राणियों के अनेक रोगों की सफल औषधियां बनती हैं । धार्मिक मान्यता है कि पीपल के वृक्ष का निरन्तर पूजन - अर्चन और परिक्रमा करने व जल चढ़ाने से सुयोग्य संतान की प्राप्ति होती है । पितर तृप्त होकर सहायता करते हैं । मनोकामना की पूर्ति हेतु पीपल के वृक्ष के तने पर सूत लपेटकर इच्छित लक्ष्य की पूर्ति की प्रार्थना की जाती है ।
 

पीपल के वृक्ष पर सूर्योदय से पूर्व दरिद्र देवता का और सूर्योदय के बाद लक्ष्मी का वास होता है । यही कारण है कि सूर्योदय के बाद ही पीपल पूजा की जाती है । श्रद्धालु जन मंदिर परिसर में पीपल का वृक्ष अवश्य लगाते हैं । धर्मग्रंथों में पीपल के वृक्ष को काटना ब्रह्म हत्या जैसा कर्म माना गया है ।

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