गणेशजी को कैथ - जामुन , दूर्वा क्यों चढ़ाते हैं ! गणेशजी का वाहन मूषक ही क्यों ?
गणेशजी के सम्बन्ध में शतमोदकप्रिय की उक्ति प्रचलित है । इस उक्ति का अर्थ है कि एक बार में सो लड्डू खा जाना गणेशजी को भाता है । उनका प्रिय व्यंजन मिष्ठान होने के कारण वे गुड़ और मोदक का अधिक सेवन करते हैं । मोदक के अभाव में गणेश पूजन भी अधूरा माना जाता है । अधिक मीठा खाने से मधुमेह रोग हो जाता है , जिसकी निवृति हेतु दूब , कैथ और जामुन उपयोगी हैं ।
इसी तरह दूर्वा ( दूब ) और हल्दी की कुछ गांठे चढ़ाने से भी गणेशजी अति प्रसन्न होते हैं । दूर्वा चढ़ाने के सम्बन्ध में एक पौराणिक कथा भी है कि भूमि पर एक बार अनलासुर ने काफी उत्पात मचाया । फलस्वरूप धार्मिक जन दु:खी हो गए । अनलासुर ने देवराज इन्द्र को भी कई बार हरा दिया तब सभी देवता भगवान शिव के पास गए । भगवान शिव ने बताया कि गणेशजी का पेट विशाल है अतः उस राक्षस को वही समाप्त कर सकते हैं । अर्थात् वह उसे निगल सकते हैं । देवताओं ने गणेश जी को प्रसन्न किया । फलस्वरूप गणेश अनलासुर को निगल गए ।
तत्पश्चात् गणेशजी के पेट में जलन होने लगी । सारे उपाय विफल होने पर कश्यप ऋषि ने कैलाश पर्वत पर जाकर इक्कीस दुर्वाएं एकत्र करके गणेशजी को खिलाई तो उनके पेट की जलन समाप्त हो गई । इसीलिए गणेशजी को आज भी दूर्वा चढ़ाई जाती है ।
गणेशजी का वाहन मूषक ही क्यों ?
सर्वविदित है कि गणेश जी का वाहन मूषक अर्थात चूहा है । लेकिन चूहा ही उनका वाहन क्यों है । इस बारे में कहा जाता है कि मूषक तर्क का प्रतीक है जबकि गणेश बुद्धि के स्वामी हैं । यह तथ्य है कि जहां तर्क काम नहीं करता वहां बुद्धि काम करती है । यही कारण है कि गणेशजी का वाहन मूषक है । यह भी तथ्य है कि चूहों को विघ्न बाधाओं का पूर्वानुमान हो जाता है । जैसे जहां महामारी फैलने वाली हो वहां चूहे मरने लग जाते हैं । जिस घर में चूहे सुख से रहते हैं वहां मंगल रहता है । इस दृष्टि से भी गणेशजी का वाहन मूषक होना उचति है
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