गणेश पूजन ही सबसे पहले क्यों ?
गणेशजी विघ्ननाशक हैं । किसी भी शुभ कार्य के आरम्भ में कार्य के निर्विघ्न सम्पन्न होने के लिए ही गणेश पूजन सर्वप्रथम किया जाता है ।
इसके अतिरिक्त भाव यह भी है कि कर्म का फल प्राप्त हो तथा लक्ष्मी की भी प्राप्ति हो । इसके बाद ही नवग्रह पूजन का विधान है ।
याज्ञवल्क्य स्मृति के आचाराध्याय -292 में वर्णित यह श्लोक इसी बात का प्रतीक है-
एवं विनायकं पूज्य ग्रहांश्चैव विधानतः ।कर्मणां फलमाप्नोति श्रियमाप्नोत्यनुत्तमाम् ॥
शिव पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार एक बार सभी देवता भगवान शिव के पास गए और करबद्ध हो उनकी स्तुति कर बोले , " हे ! प्रभो समस्त देवताओं का स्वामी किसे चुना जाए ?
शिव ने कहा , " हे देवताओ ! तुममें से जो भी तीन बार पृथ्वी की परिक्रमा करके सर्वप्रथम कैलाश पर्वत पर आ जाएगा , वही सभी देवताओं का स्वामी होगा और सर्वप्रथम पूजनीय भी वहीं होगा ।
" शिव की बात सुनकर सभी देवता अपने - अपने दूतुगामी वाहनों पर आरूढ़ होकर पृथ्वी की तीन परिक्रमा करने के लिए चल पड़े । गणेशजी का वाहन मूषक धीमी गति से चलता है , किन्तु गणेश जी का बुद्धि - चातुर्य कम नहीं है । वे अपने वाहन पर सवार होकर पास बैठे शिव - पार्वती की तीन परिक्रमा करके भगवान शिव के सामने जाकर खड़े हो गए ।
तभी शिव ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा , " गणेश ! बुद्धि - चातुर्य में तुम्हारे समान इस सृष्टि में अन्य कोई नहीं है । माता - पिता की तीन परिक्रमा करने से तीनों लोकों की परिक्रमा का पुण्य मिलता है , जो तुम प्राप्त कर चुके हो । आज से तुम सब देवताओं के स्वामी और शुभ कार्यों में सबसे पहले पूजनीय रहोगे । "
तभी से गणेश जी शुभ कार्यों में अग्रपूज्य एवं देवताओं के स्वामी हो गए ।
पद्म पुराण की कथा के अनुसार एक बार देवताओं में यह विवाद छिड़ गया कि किस देवता को प्रथम पूज्य माना जाए । इस विवाद का हल न हो सका तो सभी देवता ब्रह्माजी के पास पहुंचे । देवताओं को देखकर ब्रह्माजी बोले कि जो देव सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की सात परिक्रमा करके सर्वप्रथम मेरे पास आएगा वह प्रथम पूजनीय माना जाएगा ।
सभी देवता अपने - अपने वाहनों पर सवार होकर चल पड़े लेकिन गणेशजी को देवर्षि नारद ने पृथ्वी की परिक्रमा का सरल उपाय बताते हुए कहा कि हे गणेश ! तुम भूमि पर ' राम ' लिखकर उसकी परिक्रमा कर डालो । तुम्हारा उद्देश्य पूरा हो जाएगा ।
गणेश जी ने वैसा ही किया जिससे ब्रह्माजी प्रसन्न हो गए और उन्होंने उन्हें प्रथम पूज्य व देवताओं का भी स्वामी घोषित कर दिया । आज भी श्री गणेश न केवल भारत वरन् नेपाल , जापान , चीन , अमेरीका आदि अनेक देशों में प्रथम पूजनीय हैं ।
आशा करता हूं आपको मेरा यह ब्लॉग पसंद आया होगा यदि इसमें किसी भी प्रकार से कोई त्रुटि पाई जाती है तो दुर्गा भवानी ज्योतिष केंद्र की ओर से मैं जितेंद्र सकलानी आपसे क्षमा याचना करता हूं एवं यदि आप इस विषय में कुछ और अधिक जानते हैं और हमारे साथ यदि उस जानकारी साझा करना चाहें तो आप e-mail के माध्यम से या कमेंट बॉक्स में कमेंट के माध्यम से हमे बता सकते हैं हम आपकी उस जानकारी को अवश्य ही अपने इस जानकारी में आपके नाम सहित जोड़ेंगे
हमारा ईमेल एड्रेस है:------ www.durgabhawani9634@gmail.com
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
आपके प्रोसहन हेतु धन्यवाद हम आपकी सेवा में हमेशा तत्पर हैं एवं हमारा पर्यास है की ऐसी ही महत्वपूर्ण एवं शास्त्रों में लिखित सटीक जानकारी हम आप तक पहुंचाएं एवं आप भी हमारे नियमित पाठक बने रहें !