सनातनधर्म में अग्नि के ही सात फेरे क्यों लिए जाते हैं ?
यज्ञाग्नि के चारों ओर परिक्रमा करने को फेरे या भांवर फिरना कहते हैं । यूं तो शास्त्रों के अनुसार यज्ञाग्नि की चार परिक्रमाएं करने का विधान है , लेकिन लोकाचार की दृष्टि से सात परिक्रमाएं करने की प्रथा है । ये सात फेरे विवाह संस्कार के धार्मिक आधार व अटूट विश्वास के प्रतीक है । वर - वधू परिक्रमा बाएं से दाएं की ओर चलकर प्रारंभ करते हैं । पहली चार परिक्रमाओं में वधू आगे रहती है और वर पीछे । शेष तीन परिक्रमाओं में वर आगे और वधू पीछे चलती है । हर परिक्रमा के दौरान पंडित जी द्वारा विवाह संबंधी मंत्रोच्चारण किया जाता है और परिक्रमा पूर्ण होने पर वर - वधू गायत्री मंत्रानुसार यज्ञ में हर बार एक - एक आहुति देते हैं । आध्यात्मिक दृष्टि से अग्नि पृथ्वी पर सूर्य की प्रतिनिधि है और सूर्य जगत की आत्मा तथा विष्णु का रूप है । अतः अग्नि के समक्ष फेरे लेने का अर्थ है , परमात्मा के समक्ष फेरे लेना । अग्नि हमारे सभी पापों को जलाकर नष्ट भी कर देती है । अत: जीवन में पूर्ण पवित्रता से ही एक अति महत्वपूर्ण कार्य का आरंभ अग्नि के सामने ही करना सब प्रकार से उचित है । व