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जानिए राहु के रत्न गोमेद की विशेषताएं।

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राहु - गोमेद स्वरूप व परिचयः राह का रत्न गोमेद है । गोमेद को भारतीय साहित्य में गोमेदक , बाहुरत्न , भीष्म रत्न आदि नामों से पुकारा गया है । आंग्ल भाषा में इसे ( CINNAMON STONE या HESSONITE ) कहते हैं , क्योंकि इसका रंग दालचीनी जैसा होता है । कुछ  विद्वान इसे ‘ जिरकोन ' भी कहते हैं । यह गाय के मेद के ( गोरोचन ) समान , गौमूत्र के समान अथवा शहद के समान रंग वाला , चमकीला , चिकना व कुछ भारी रत्न होता है । उत्तम गोमेद गोमूत्र के रंग व जल के समान आभा देने वाला होता है । गोमेद प्राय: चांदी में ही पहना जाता है । गुण व लाभः गोमेद कफ व पित्त का नाशक , पाण्डुरोग तथा तपेदिक का नाश करने वाला , विष प्रभाव को कम करने वाला रत्न है । गोमेद के साथ माणिक , मूंगा व पुखराज निषिद्ध हैं ।  परीक्षा व उपरत्नः असली गोमेद को यदि गौमूत्र में 24 घण्टे भिगोकर रखें तो गाय के मूत्र का रंग बदल जाता है । लकड़ी के बुरादे पर घिसने से गोमेद की चमक और बढ़ जाती है । गोमेद का उपरत्न तुर्सावा / ऋतुरत्न है । धारण - विधिः धारण - विधि पूर्ववत है , किन्तु इसे शनिवार या बुधवार को , शनि या बुध की होरा में , रि

जानिए शनि ग्रह के रत्न नीलम की विशेषताएं

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शनि - नीलम स्वरूप व परिचयः शनि का रत्न नीलम है । अतः इसे शौरीरत्न भी कहते हैं । भारतीय वाङमय में नीलम को नीलमणि , नील , नीलाश्म या इन्द्रनील कहा गया है । आंग्ल भाषा में इसको BLUE SAPPHIRE कहते हैं । कछ लोग केवल ‘ सैफायर ' भी कहते हैं । यह प्रायः रॉयल ब्लू या हलके वायोलेट कलर में होता है । इनके अतिरिक्त नीलम का किसी और रंग का होना या पतीत होना नीलम का दोष है । कश्मीर में पाडर की खान का नीलम सर्वोत्तम माना जाता है । इसे ' मयुरनील ' भी कहते हैं , क्योंकि इसका रंग मोर की गर्दन से मिलता है । कहीं - कहीं लाल रंग की चमक वाला नीलम भी मिलता है । इसे ‘ खूनी नीलम ' कहते हैं । यह निम्न कोटि का रत्न है । सफेद झलक वाला नीलम ' ब्राह्मण , पीली झलक वाला शूद्र माना गया है । नीलम एक कांतिवान , चिकना व पारदर्शी रत्न है जो बिजली के प्रकाश में भी अपना रंग नहीं बदलता । नीलम की गिनती माणिक्य की भांति महारत्नों में होती है । नीलम में जाल या डोरा पड़ा हो तो उसे त्याग देना चाहिए । नीलम सदैव निर्दोष पहनना चाहिए । दोषयुक्त नीलम विभिन्न उपद्रव खड़े करता है तथा देश से निष्कासन व दरिद्रता

जानिए शुक्र ग्रह के रत्न हीरे की विशेषताएं।

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शुक्र - हीरा  स्वरूप व परिचयः  शुक्र ग्रह का रत्न हीरा है । हीरे को संस्कृत में हीरक या वज्र कहते हैं । भारतीय साहित्य में इसे अभेद्य , सायक आदि नामों से भी पुकारा गया है । आंग्ल भाषा में हीरे के लिए DIAMOND शब्द प्रयुक्त होता है । यवनों में इसे ‘ अल्माज ' भी कहते हैं । जैसा कि सभी जानते हैं कि यह समस्त रत्नों में अति कठोर तथा कार्बन का अपरूप है ( हीरे को हीरा ही काट सकता है , यह इसकी कठोरता का सही उदाहरण है । ) पौराणिक संदर्भ में हीरे की उत्पत्ति बलि दैत्य की अस्थियों से हुई है । ( दांत से मोती , रक्त से माणिक , पित्त से पन्ना , आंख से नीलम , रज से वैदूर्प , नाखून से गोमेद , मांस से मूंगा , चर्म से पुखराज आदि उत्पन्न हुए हैं । वस्तुतः रत्न पृथ्वी के विकार ही हैं । ) हीरा बहुमूल्य , पारदर्शक , कठोर , अति चमकदार , निर्मल , चिकना , सुन्दर , सूर्य किरणों का प्रसारक तथा वर्णहीन होता है तथापि कुछ हीरों में सफेद , लाल , पीली , काली , झांई भी होती है । ( रत्न - वर्ण जाति के हिसाब से ये क्रमशः ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य व शूद्र जाति के हीरे होते हैं । वैसे हीरे के तीन भेद पुरुष , स्

जानिए किन-किन राशियों पर पड़ेगा चंद्रग्रहण का कैसा प्रभाव!

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भूमण्डलीय खग्रास चंद्रग्रहण यह चंद्रग्रहण आषाढ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा, शुक्रवार, दि०16/17 जुलाई 2019 को खण्डग्रास रूप में भारत में दिखाई देगा। भारतीय समयानुसार समयानुसार यह ग्रहण 16 जुलाई 2019 को रात्रि 1:37 से रात्रि 4:32 बजे के मध्य दिखाई देगा । इस ग्रहण का सूतक दिनांक 16/07/2019 को शाम 4:37 बजे से प्रारम्भ होगा । चन्द्रग्रहण का सुतक ग्रहण के स्पर्श समय से 9 घंटे पहले लगता है । ग्रहण के सूतक में बच्चों को, वृद्ध और अस्वस्थ्यजनों को छोड़कर शेष को भोजन - शयन आदि नहीं करना चाहिए ।  ग्रहण स्पर्श - 1:37 बजे रात्रि  ग्रहण मध्य 3:05 बजे रात्रि  ग्रहण मोक्ष - 4:32 बजे रात्रि  ( पूर्णकाल - 2 घंटा / 55 मिनट ) ग्रहण फल- यह चंद्रग्रहण आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा मंगलवार दि० 16 जुलाई 2019 उत्तराषाढा नक्षत्र के धनुरातिगत चन्द्रमा में घटित होगा । सांसारिक फल आषाढ़ मास में चंद्र ग्रहण होने से- वर्षा की स्थिति विकट रहती है । कहीं अति वर्षा व कहीं साधारण वर्षा होने से अन्न उत्पादन में कमी होती है । किसी क्षेत्र विशेष में किसी रोग विशेष का प्रकोप बढ़ने का भय , जन - धन हानि होती है ।

जानिए बृहस्पति के नग पुखराज की विशेषताएं।

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बृहस्पति-  पुखराज परिचय स्वरूपः बृहस्पति का रत्न पुखराज है । पुखराज को भारतीय ग्रन्थों में पीतमणि , पुष्पराज व जीवरत्न आदि नामों से सम्बोधित किया गया है । आंग्ल भाषा में पुखराज को YELLOW SAPPHIRE कहा जाता है । बहुत से लोग इसे TOPAZ के नाम से भी पुकारते हैं , यह स्वच्छ , पीला व हलकी सफेद कांति वाला पारदर्शी रत्न है । पीतकर्णिकार पुष्प के रंग का पुखराज जो कसौटी पर घिसने के बाद और भी चमकता है सर्वोत्तम कहा गया है । शुद्ध पुखराज रंगहीन होता है , उसको WITLS SAPPHIRI कहा जाता है । बर्मा के पुखराज श्रेष्ठ माने गए हैं । पुखराज में पीले रंग में भी विभिन्न भेद हैं कन्हेर के फूल की भांति , अम्लताज़ के फूल की भाति , सरसों के फूल की भाति , अमलताज के फूल की रंग की भाति सरसों के फूल की भांति, मलमल के रंग की भांति, केसर की बूटी के रंग की भाति आदि विभिन्न रंग इसके कहे गए हैं । इसको स्वर्ण में धारण किया जाता है । गुण व लाभः पुखराज मन को प्रसन्न करता है तथा बहुत से रोगों को दूर करता है । आधा सीसी का दर्द , इन्फ्लूएंजा , कनपड़े आदि में पुखराज धारण करना लाभकारी है । पुखराज से उत्साह बढ़ता है

जानिए बुध के रत्न पन्ना की विशेषताएं।

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बुध - पन्ना परिचय व स्वरूपः बुध का रत्न पन्ना है । पन्ने को भारतीय साहित्य में सोपर्णी, मरकत मणि आदि नामों से पुकारा गया है । यवनों में इसे जुमर्व या सबजा और आंग्ल भाषा में EMERALD कहते हैं । यह साफ तथा हरे रंग का कोमल सुन्दर , चिकना तथा पारदर्शी होता है । पन्ने में दोष अवश्य होते हैं । अतः कम - से - कम दोष वाला धारण करें । कोलम्बिया की खान का पन्ना सर्वश्रेष्ठ बताया जाता है । भारत में जयपुर पन्ने की कटाई के काम के लिए प्रसिद्ध है । पन्ने के रंग अंगूर के समान , ताते के पंख के समान , मोर के पंख के समान , नींबू के पत्ते के समान , मखमली घास के समान तथा बांस के पत्ते के समान कहा गया है । कमल के पत्ते पर पड़े पानी की बूंद के समान उसकी निर्मल कांति होती है । गुण व लाभः पन्ना विघ्ननाशक है । स्वप्न - दोष , नाडी - दोष , दृष्टि - दोष , अन्धापन , मंदाग्नि तथा सुस्ती का नाश करने वाला है । यह फूड प्वाइजनिंग से बचाता है । ‘ गारुडी विद्या ' ( सांप पकड़ने व वशीकृत कर लेने की विद्या ) के अनुसार मरकत मणि पर दृष्टि पड़ते ही साप अन्धा हो जाता है तथा इसमें सर्पविष को हटाने की शक्ति होती है

जानिए मंगल के रत्न मूंगा की विशेषताएं।

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मंगल - मूंगा  स्वरूप व परिचयः  मंगल का रत्न मूंगा है । इसे भारतीय वाङमय में अंगारक , प्रवाल , लतामणि , विद्रुम आदि नामों से जाना जाता है । पाश्चात्य जगत इसे CORAL के नाम से जानता है । यवनों में मूंगे को ‘ मिर्जान ' कहा जाता है । आम भाषा में इसे । मोंगा भी कह देते हैं । मूंगा लम्बा , गोल , चिकना , गुम ( अपारदर्शी ) तथा बिम्ब फल के , सिंदूर के अथवा हिंग्लू के समान लाल वर्णीय होता है । वैसे गुलाबी , संतरी , सफेद और काले मूंगे भी मिलते हैं । जिस मूंगे में आर - पार छिद्र होता है उसे अंगूठी में धारण न करके माला में धारण करना चाहिए । इस प्रकार के मूंगे को ‘ गुल्ली ' भी कहा जाता है  मोती की भांति यह भी समुद्र से प्राप्त होने वाला रत्न है तथा नवरत्नों में सबसे कम मूल्य का है । मुंगे का निर्माण भी समुद्री कीड़ों से होता है । बहरा रोम की लह से निकला मूंगा अधिक उत्तम बताया जाता है । गुण व लाभः  इसका प्रवाल नाम इसकी विशेषता को बताता है । यह हर प्रकार के मोह और शोक को नष्ट करता है । मोंगा सूजाक , श्वेत कुष्ठ , ताम्रकुष्ठ तथा रक्तचाप सम्बन्धी रोगों को नहीं होने देता , अगर हों त

जानिए चंद्र रत्न मोती की विशेषताएं

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चन्द्र - मोती  परिचय व स्वरूपः  चन्द्रमा का रत्न मोती है । इसे मुक्ता, मुक्ताफल, इन्द्ररत्न आदि नामों से भारतीय साहित्य में जाना जाता है । यवनों में इसे ' लुलू ' भी कहा जाता है तथा पाश्चात्य समाज में इसे PEARL . के नाम से जानते हैं । मोती एक चिकना , चमकदार , प्रायः गोल , सफेद व गुम ( अपारदर्शी ) रत्न है जो सीपी में घर बनाने वाले जलीय जीव द्वारा उत्पन्न होता है । मोती में एक के ऊपर एक कई परतें चढ़ी होती है । मोती की पवित्रता का चिन्ह एवं जीवनरक्षक भी माना गया है । समुद्र से प्राप्त होने वाले ( सीपी में ) मोतियों के भी अलावा मीन मुक्ता ( मछली के पेट से पाया जाता है ) । गजमुक्ता ( हाथी के मस्तक से पाया जाता है ) , सर्पमुक्ता ( सांप के फन से पाया जाता है ) , वंश मुक्ता ( बांस की पोरी से पाया जाता है ) आदि मोती भी प्राप्त होते हैं जिन्हें धारण करने के अलग - अलग प्रभाव हैं । फारस की खाड़ी में पाया जाने वाला मोती उत्तम माना जाता है । गुण प्रभावः मोती की भस्म का आयुर्वेदीय चिकित्सा में सेवन भी किया जाता है । मोती तपेदिक को दूर करता है , दिल धड़कने की शिकायत दूर करता है , दृ

जानिए सूर्य रत्न माणिक्य की विशेषताएं।

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माणिक्य रत्न आज हम जानेंगे सूर्य के लिए धारण किए जाने वाला रत्न माणिक्य के बारे में एवं उसकी विशेषताएं। परिचय-  सूर्य का रत्न माणिक है संस्कृत के प्राचीन साहित्य में माणिक्य के लिए माणिक तथा पदमराग नाम मिलते हैं। बाद में इसे रविरत्न, लोहित आदि नामों से भी पुकारा गया । यवनों ने इसे याकूत के नाम से और पाश्चात्य जगत में रूबी नाम से पुकारा जाता है। बौद्ध धर्म में इसे महात्मा बुद्ध का आंसू माना गया है और अत्यंत पवित्र मानते हैं कुछ पौराणिक रचनाओं के अनुसार माणिक की उत्पत्ति बली दैत्य के रुधिर से हुई कहा जाता है कि लंका में रावण को गंगा के किनारे यह सर्वप्रथम उपलब्ध हुआ।  माणिक की विशेषता रंग बदलकर धारण करने वाले को आने वाले कष्ट से सावधान कर देना है । कष्ट आने से पूर्ण यह रंग में हलका हो जाता है । कष्ट की ज्यादती पर पुनः अपनी रंगत में लौट आता है । आम भाषा में इसे चुनी अथवा लाल भी कहा जाता है । गुण लाभः माणिक को मस्तक पर धारण करने से मस्तिष्क की शक्ति एवं अभ्यन्तर ज्ञानशक्ति बढ़ती है । हदय पर धारण करने से हृदय को बल मिलता है । भूत - प्रेत आदि इसके धारण करने वाले के निकट नहीं आत