जानिए चंद्र रत्न मोती की विशेषताएं
चन्द्र - मोती
परिचय व स्वरूपः
चन्द्रमा का रत्न मोती है । इसे मुक्ता, मुक्ताफल, इन्द्ररत्न आदि नामों से भारतीय साहित्य में जाना जाता है । यवनों में इसे ' लुलू ' भी कहा जाता है तथा पाश्चात्य समाज में इसे PEARL . के नाम से जानते हैं । मोती एक चिकना , चमकदार , प्रायः गोल , सफेद व गुम ( अपारदर्शी ) रत्न है जो सीपी में घर बनाने वाले जलीय जीव द्वारा उत्पन्न होता है । मोती में एक के ऊपर एक कई परतें चढ़ी होती है । मोती की पवित्रता का चिन्ह एवं जीवनरक्षक भी माना गया है । समुद्र से प्राप्त होने वाले ( सीपी में ) मोतियों के भी अलावा मीन मुक्ता ( मछली के पेट से पाया जाता है ) । गजमुक्ता ( हाथी के मस्तक से पाया जाता है ) , सर्पमुक्ता ( सांप के फन से पाया जाता है ) , वंश मुक्ता ( बांस की पोरी से पाया जाता है ) आदि मोती भी प्राप्त होते हैं जिन्हें धारण करने के अलग - अलग प्रभाव हैं । फारस की खाड़ी में पाया जाने वाला मोती उत्तम माना जाता है ।
गुण प्रभावः
मोती की भस्म का आयुर्वेदीय चिकित्सा में सेवन भी किया जाता है । मोती तपेदिक को दूर करता है , दिल धड़कने की शिकायत दूर करता है , दृष्टि - दोष दूर करता है तथा वीर्यवर्धक का काम करता है । चन्द्रमा की धातु चांदी है अतः मोती को सदैव चादी में ही धारण करना चाहिए । मोती शांति व प्रसन्नता देने वाला है अतः चिन्ता उच्चाटन , भ्रम , अशांति , उद्विग्नता आदि में मोती पहनने से अथवा खाने ( भस्म रूप में ) से लाभ होता है । जोड़ों के दर्द , दमा आदि में भी मोती लाभकारी है । अन्य बहुत से रोगों में भी मोती उपयोगी है । इसीलिए इसका नाम मुक्ता , मौक्तिक आदि पड़ा , क्योंकि इसका अर्थ है रोगों से शरीर को मुक्त करने वाला । मोती के साथ हीरा , पन्ना , लहसुनिया व गोमेद नहीं पहनते ।
परीक्षा व शोघन विधियां:
मोती को गोमूत्र में रात भर डुबोकर रखें । यदि वह तड़के नहीं तो वह मोती असली होगा । पानी से भरे कांच के गिलास में डालने पर असली मोती की किरणें पानी बेधकर निकलती रहती हैं । ऐसा भी सुना जाता है कि एक कटोरी में थोड़ा - सा देशी घी डालकर उसमें मोती डाल दें । यदि मोती असली होगा तो घी पिघल जाएगा चावल के दानों पर रगड़ने से असली मोती की चमक बढ़ जाती है , नकली की कम होती है । सेंधा नमक व सरसों का तेल मिलाकर उसमें थोडा गरम पानी डालकर मोती उसमें छोड़ दें । रात भर पड़ा रहने दें । अगले दिन मोती निकालकर धान के छिलके में खुब मलें । यदि रंगत न बदले तो मोती असली होगा, साथ ही माती इस प्रक्रिया से साफ भी हो जाएगा ।
उपरत्नः
मोती के उपरत्न चन्द्रकांत मणि ( moonstone), गौदंता , ओपल आदि हैं । मानसिक समस्याओं व शांति के लिए चन्द्रकांत मणि पहनना भी उत्तम है । मोती या मोती के उपरत्नों को दाएं हाथ की कनिष्ठा उंगली में धारण करें ।
धारण-विधिः
शुक्लपक्ष के किसी भी सोमवार को , पूर्णिमा को अथवा पुण्य रोहिणी नक्षत्र में मोती पहना जा सकता है । ढाई रत्ती से चार रती तक का मोती धारण करने योग्य होता है । उपरत्न इससे अधिक वजन का पहना जाना चाहिए । तरीका वहीं है , धारण करने के एक दिन पूर्व दूध में डुबोकर ईश्वर के आगे रख दें , अगले दिन चंद्रमा की होरा में गंगाजल से धो - पोछकर धूप दिखाकर , इत्र में सुवासित करके उसे ईश्वर से शुभ कामना के साथ पहनें । गंगाजल से धोने और पहनने से पूर्व चन्द्र के जाप मंत्र : श्रीं श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः ) की कम - से - कम एक माला अवश्य जपें । कहने आवश्यकता नहीं कि अन्य रनों की भांति इसे भी स्थाई रूप में धारण करने से इसके शुभत्व की परीक्षा कर लेनी चाहिए । मोती को इत्र से सुवासित करके ही धारण करना चाहिए तथा रोज रात्रि को सोने से पूर्व धारण किए हुए मोती पर थोड़ा सा इत्र लगा लेना चाहिए । इससे मोती अतिशुभ फल देता है। यदि पहनते - पहनते कुछ समय बाद मोती की चमक फीकी पड़ लगे तो उसे उतार देना चाहिए और कुछ दिनों बाद चमक लौट आने पर पुनः धारण करना चाहिए ।
कौन पहने , सामान्य नियमः
कर्क लग्न हो, जन्मकुण्डली में चन्द्र निर्बल है चन्द्रमा की अन्तर्दशा या महादशा हो , जातक की राशि कर्क हो , चन्द्र संबंधी पीड़ा हो , केमद्रुम योग हो , चन्द्रमा के साथ राहु या केतु हो , अथवा चन्द्रमा छटे , आठ या बारहवें घर में हो तो मोती धारण किया जाता है ।
परिचय व स्वरूपः
चन्द्रमा का रत्न मोती है । इसे मुक्ता, मुक्ताफल, इन्द्ररत्न आदि नामों से भारतीय साहित्य में जाना जाता है । यवनों में इसे ' लुलू ' भी कहा जाता है तथा पाश्चात्य समाज में इसे PEARL . के नाम से जानते हैं । मोती एक चिकना , चमकदार , प्रायः गोल , सफेद व गुम ( अपारदर्शी ) रत्न है जो सीपी में घर बनाने वाले जलीय जीव द्वारा उत्पन्न होता है । मोती में एक के ऊपर एक कई परतें चढ़ी होती है । मोती की पवित्रता का चिन्ह एवं जीवनरक्षक भी माना गया है । समुद्र से प्राप्त होने वाले ( सीपी में ) मोतियों के भी अलावा मीन मुक्ता ( मछली के पेट से पाया जाता है ) । गजमुक्ता ( हाथी के मस्तक से पाया जाता है ) , सर्पमुक्ता ( सांप के फन से पाया जाता है ) , वंश मुक्ता ( बांस की पोरी से पाया जाता है ) आदि मोती भी प्राप्त होते हैं जिन्हें धारण करने के अलग - अलग प्रभाव हैं । फारस की खाड़ी में पाया जाने वाला मोती उत्तम माना जाता है ।
गुण प्रभावः
मोती की भस्म का आयुर्वेदीय चिकित्सा में सेवन भी किया जाता है । मोती तपेदिक को दूर करता है , दिल धड़कने की शिकायत दूर करता है , दृष्टि - दोष दूर करता है तथा वीर्यवर्धक का काम करता है । चन्द्रमा की धातु चांदी है अतः मोती को सदैव चादी में ही धारण करना चाहिए । मोती शांति व प्रसन्नता देने वाला है अतः चिन्ता उच्चाटन , भ्रम , अशांति , उद्विग्नता आदि में मोती पहनने से अथवा खाने ( भस्म रूप में ) से लाभ होता है । जोड़ों के दर्द , दमा आदि में भी मोती लाभकारी है । अन्य बहुत से रोगों में भी मोती उपयोगी है । इसीलिए इसका नाम मुक्ता , मौक्तिक आदि पड़ा , क्योंकि इसका अर्थ है रोगों से शरीर को मुक्त करने वाला । मोती के साथ हीरा , पन्ना , लहसुनिया व गोमेद नहीं पहनते ।
परीक्षा व शोघन विधियां:
मोती को गोमूत्र में रात भर डुबोकर रखें । यदि वह तड़के नहीं तो वह मोती असली होगा । पानी से भरे कांच के गिलास में डालने पर असली मोती की किरणें पानी बेधकर निकलती रहती हैं । ऐसा भी सुना जाता है कि एक कटोरी में थोड़ा - सा देशी घी डालकर उसमें मोती डाल दें । यदि मोती असली होगा तो घी पिघल जाएगा चावल के दानों पर रगड़ने से असली मोती की चमक बढ़ जाती है , नकली की कम होती है । सेंधा नमक व सरसों का तेल मिलाकर उसमें थोडा गरम पानी डालकर मोती उसमें छोड़ दें । रात भर पड़ा रहने दें । अगले दिन मोती निकालकर धान के छिलके में खुब मलें । यदि रंगत न बदले तो मोती असली होगा, साथ ही माती इस प्रक्रिया से साफ भी हो जाएगा ।
उपरत्नः
मोती के उपरत्न चन्द्रकांत मणि ( moonstone), गौदंता , ओपल आदि हैं । मानसिक समस्याओं व शांति के लिए चन्द्रकांत मणि पहनना भी उत्तम है । मोती या मोती के उपरत्नों को दाएं हाथ की कनिष्ठा उंगली में धारण करें ।
धारण-विधिः
शुक्लपक्ष के किसी भी सोमवार को , पूर्णिमा को अथवा पुण्य रोहिणी नक्षत्र में मोती पहना जा सकता है । ढाई रत्ती से चार रती तक का मोती धारण करने योग्य होता है । उपरत्न इससे अधिक वजन का पहना जाना चाहिए । तरीका वहीं है , धारण करने के एक दिन पूर्व दूध में डुबोकर ईश्वर के आगे रख दें , अगले दिन चंद्रमा की होरा में गंगाजल से धो - पोछकर धूप दिखाकर , इत्र में सुवासित करके उसे ईश्वर से शुभ कामना के साथ पहनें । गंगाजल से धोने और पहनने से पूर्व चन्द्र के जाप मंत्र : श्रीं श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः ) की कम - से - कम एक माला अवश्य जपें । कहने आवश्यकता नहीं कि अन्य रनों की भांति इसे भी स्थाई रूप में धारण करने से इसके शुभत्व की परीक्षा कर लेनी चाहिए । मोती को इत्र से सुवासित करके ही धारण करना चाहिए तथा रोज रात्रि को सोने से पूर्व धारण किए हुए मोती पर थोड़ा सा इत्र लगा लेना चाहिए । इससे मोती अतिशुभ फल देता है। यदि पहनते - पहनते कुछ समय बाद मोती की चमक फीकी पड़ लगे तो उसे उतार देना चाहिए और कुछ दिनों बाद चमक लौट आने पर पुनः धारण करना चाहिए ।
कौन पहने , सामान्य नियमः
कर्क लग्न हो, जन्मकुण्डली में चन्द्र निर्बल है चन्द्रमा की अन्तर्दशा या महादशा हो , जातक की राशि कर्क हो , चन्द्र संबंधी पीड़ा हो , केमद्रुम योग हो , चन्द्रमा के साथ राहु या केतु हो , अथवा चन्द्रमा छटे , आठ या बारहवें घर में हो तो मोती धारण किया जाता है ।
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