जानिए सूर्य रत्न माणिक्य की विशेषताएं।

माणिक्य रत्न


आज हम जानेंगे सूर्य के लिए धारण किए जाने वाला रत्न माणिक्य के बारे में एवं उसकी विशेषताएं।



परिचय- सूर्य का रत्न माणिक है संस्कृत के प्राचीन साहित्य में माणिक्य के लिए माणिक तथा पदमराग नाम मिलते हैं। बाद में इसे रविरत्न, लोहित आदि नामों से भी पुकारा गया । यवनों ने इसे याकूत के नाम से और पाश्चात्य जगत में रूबी नाम से पुकारा जाता है।
बौद्ध धर्म में इसे महात्मा बुद्ध का आंसू माना गया है और अत्यंत पवित्र मानते हैं कुछ पौराणिक रचनाओं के अनुसार माणिक की उत्पत्ति बली दैत्य के रुधिर से हुई कहा जाता है कि लंका में रावण को गंगा के किनारे यह सर्वप्रथम उपलब्ध हुआ।
 माणिक की विशेषता रंग बदलकर धारण करने वाले को आने वाले कष्ट से सावधान कर देना है । कष्ट आने से पूर्ण यह रंग में हलका हो जाता है । कष्ट की ज्यादती पर पुनः अपनी रंगत में लौट आता है । आम भाषा में इसे चुनी अथवा लाल भी कहा जाता है ।

गुण लाभः माणिक को मस्तक पर धारण करने से मस्तिष्क की शक्ति एवं अभ्यन्तर ज्ञानशक्ति बढ़ती है । हदय पर धारण करने से हृदय को बल मिलता है । भूत - प्रेत आदि इसके धारण करने वाले के निकट नहीं आते तथा यह भय का नाश करता है । विष के नजदीक लाने पर इसका रंग फीका पड़ जाता है । सर्पविष का प्रभाव माणिक्य के घारण से बहुत कम हो जाता है अथवा बिल्कुल नहीं रहता । अतः पहले राजा लोग इसे मुकुट , हार और अंगूठी में धारण करते थे ।

स्वरूप व प्रकारः माणिक्य का रंग लाल कमल जैसा , दहकते कोयले जैसा , लाख जैसा , सारस कोयल की आंख जसा , अशोक के फूल या अनार के दानों जैसा , शहद जैसा , इन्द्रगोप जैसा आदि बताया गया है । उत्तम माणिक्य का रंग कबूतर के रक्त जैसा माना गया है । इससे सिद्ध होता है कि माणिक हलका हो या गाढा रंग लाल ही होता । है । (अशोक पुष्प सदृशं दरिद्रत्वं करोति हि ) इनमें अशोक के फूल जैसे रंग वाला माणिक्य दरिद्रता उत्पन्न करने वाला कहा गया है । सूर्य जिस प्रकार समस्त ग्रहों का राजा है उसी प्रकार माणिक्य सब रत्नों में बहुमूल्य है । इसे महारत्न माना गया है । यह पारदर्शी होता है । इसमें अधिक लालिमा लिया हुआ माणिक ब्राह्मण , हलके लाल रंग का क्षत्रिय , कुछ पीली छाई वाला वैश्य और कुछ काली छाई वाला शूद्र माना गया है । अपने वर्णानुसार माणिक को धारण करना श्रेष्ठ है । खुरदरा , खंडित, गुम ( OPAQUE ) , सफेदी की झलक वाला , दोरंगा तथा धारीयुक्त माणिक्य नहीं पहनना चाहिए । माणिक्य साफ , चिकना , सुन्दर , चमकदार तथा संतुलित होना चाहिए ।


परीक्षण विधियांः माणिक की परीक्षा की कई विधियां हैं । यदि माणिक को नेत्र बंद करके पलकों पर रखा जाए तो आंखों में ठंडक मालूम पड़ती है । यदि माणिक को बकरी के दध में डाला जाए तो दूध का रंग लालिमा युक्त हो जाता है । झीनी रूई में लिपटा माणिक रूई में से अपनी आभा फेकता रहता है । 24 घंटे गोमूत्र में रखने से इसकी चमक फीकी नहीं पड़ती । यह सब माणिक के असली होने की पहचान है ।

उपरत्न: जो लोग माणिक धारण में समर्थ नहीं हैं वे उपरत्न धारण करें । माणिक के उपरत्न में मैसूरी माणिक , तामड़ा , सूर्यकांत मणि तथा सौगन्धिक आदि हैं । स्पष्ट है कि इनका प्रभाव माणिक्य से कम होता है , किन्तु माणिक्य को खरीद न पाने की स्थिति में उपरत्न धारण करना विवशता ही है । माणिक कम - से - कम तीन रत्ती का अवश्य होना चाहिए । आवश्यक होने पर किसी विद्वान ज्योतिषी की राय से अधिक वजन का ( 5 रत्ती तक भी ) माणिक्य धारण किया जा सकता है । धारण करने से पूर्व एक बार माणिक को सिराहने रखकर सोना चाहिए । यदि स्वप्न अच्छा आए तो उसे धारण करें ; अथवा लाल या सफेद रेशमी वस्त्र में लपेट कर दो - तीन दिन दाई भुजा पर बांधकर उसके शुभत्व की परीक्षा करें ।

धारण विधिः माणिक्य धारण करने के लिए उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र व रविवार उत्तम होता है । शनिवार की रात्रि में माणिक को गाय के कच्चे दूध में डालकर रख दें । प्रातः सूर्य की होरा में गंगाजल से माणिक को भली प्रकार धो - साफ करके , धूप दिखाकर सूर्यमंत्र की ( कम - से - कम ) एक माला जपकर फिर ईश्वर या सूर्य से माणिक के शुभ होने की प्रार्थना करके उसे धारण करें । सूर्य की धातु स्वर्ण और तांबा है । अतः माणिक को स्वर्ण में ही धारण करना श्रेष्ठ है । माणिक , माणिक के उपरत्न अथवा स्वर्ण की अंगूठी भी धारण कर पाने में असमर्थ व्यक्ति को तांबे का छल्ला ही उपयुक्त विधि से धारण करना चाहिए । सूर्य का जप मंत्र। ( ओम् हां ही हों सः सूर्याय नमः । ) माणिक दाएं हाथ की अनामिका में पहनें ।

कब और कौन पहने ? प्रायः सूर्य के लग्न में स्थित होने पर , अथवा सूर्य की महादशा , अंतर्दशा या लग्न में सूर्य की राशि होने पर , जन्मांक में सूर्यकारक हो परन्तु निर्बल स्थिति में हो तो अथवा सूर्य के लग्नेश , पंचमेश , भाग्येश या दशमेश होकर छठे , आठवें अथवा बारहवें घर में नीच या शत्रु राशि में स्थित होने पर माणिक को धारण किया जाता है । वृष व तुला राशि वालों को प्रायः माणिक्य नहीं धारण करना चाहिए । कर्क राशि , मकर व कुम्भ राशि में भी माणिक धारण नहीं करना चाहिए । सिंह राशि में माणिक अधिक ठीक रहता है । हीरे व नीलम के साथ भी माणिक को नहीं पहना जाता । गोमेद एवं लहसुनिया के साथ भी माणिक नहीं पहनना चाहिए ।

टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुंदर ज्ञानवर्धक जानकारी

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    1. दुर्गा भवानी ज्योतिष केंद्र आपके द्वारा दिए गए सम्मान का आभारी हैं

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  2. This information is very helpfull for me other wise i have so many stones in my finger for my good luck bt is doesn't work
    And now i have good conclusion and solution for my good luck thats the behind reason is you and ur jyotish kendra!!!
    Thank u to being my life happy

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