ब्रह्ममुहूर्त में उठने का निर्देश क्यों ?
रात्रि के अन्तिम प्रहर का तीसरा भाग ब्रह्ममुहूर्त कहलाता है । आयुर्वेद के अनुसार प्रात: 4 बजे से 5.30 बजे तक का समय ब्रह्ममुहूर्त कहलाता है । ब्रह्ममुहूर्त शब्द ब्रह्मी से बना है । शास्त्रों में ब्रह्मीं ज्ञान की देवी सरस्वती को कहा गया है । यही कारण है कि प्राचीन गुरुकुलों में आचार्य ब्रह्ममुहूर्त में ही अपने शिष्यों को वेदों का अध्ययन कराते थे । आज भी विश्व के प्रसिद्ध विद्वान , विचारक और साधक ब्रह्ममुहूर्त में उठकर अपने दैनिक क्रिया - कलापों को करते हैं । ऋग्वेद ( 1/125/1 ) में कहा गया है- प्रातारत्नं प्रातरित्वा दधाति तं चिकित्वान्प्रतिगृह्यानिधत्ते । तेन प्रजां वर्धयमान आयू रायस्पोषेण सचेत सुवीरः ॥ अर्थात् ब्रह्ममुहूर्त में उठने वाला व्यक्ति उत्तम स्वास्थ्य को प्राप्त करता है । अत : बुद्धिमान व्यक्ति इस अमूल्य समय को व्यर्थ नहीं करते । ब्रह्ममुहूर्त में उठने वाला व्यक्ति सुखी , स्वस्थ , पुष्ट , बलवान , वीर और दीर्घायु होता है । अथर्ववेद ( 7/14/2 ) में कहा गया है उद्यन्त्सूर्य इव सुप्तानां द्विषतां वर्च आ यदे । अर्थात् जो व्यक्ति सूर्योदय तक भी नहीं उठते , उनक