शुभ कर्म पूर्वाभिमुख होकर क्यों किए जाते हैं ?
अथर्ववेद ( 5/30/15 ) में आया है कि सूर्यस्त्वाधिपतिर्मृत्यो रुदायच्छतु रश्मिभिः । अर्थात् मृत्यु के पाश को काटने के लिए सूर्य के प्रकाश से सम्पर्क बनाओ । अथर्ववेद ( 8/14 ) में आया है कि मृत्योः पड्वीशं अवमुंचमानः । माच्छित्था आत्माल्लोकादग्नेः सूर्यस्य संदृशः ।। अर्थात् सूर्य के प्रकाश में रहना अमृतलोक में रहने के समान है । सूर्य को साक्षात् नारायण का प्रतीक माना गया है । सूर्य ही ब्रह्मा के समान एकमात्र ऐसे देव हैं , जिनके पूजन - अर्चन का प्रत्यक्ष फल प्राप्त होता है और मनोकामनाएं पूरी होती हैं ।
सूर्योपनिषद् के अनुसार सभी देव , गन्धर्व एवं ऋषि - मुनि सूर्य की किरणों में निवास करते हैं । समस्त पुण्य , सत्य और सदाचार में सूर्य का ही अंश माना गया है । इसी कारण सूर्य की किरणों और उनके प्रभाव की प्राप्ति के लिए शुभ कार्य पूर्वाभिमुख होकर किए जाते हैं ।
विज्ञान की दृष्टि से सूर्योदय के समय की रश्मियों में अवरक्त किरणें होती हैं । इनमें बहुत से रोगों के कीटाणुओं को नष्ट करने की विशेष क्षमता होती है । सूर्य - रश्मियों में सात अलग - अलग प्रकार की ऊर्जा - किरणें भी पाई जाती हैं , जो विभिन्न प्रकार की क्षमताओं से युक्त होती हैं । इन क्षमताओं के कारण ही धार्मिक अनुष्ठान सहज ही सफल जाते हैं ।
सूर्य - रश्मियों की विभिन्न क्षमताओं से युक्त ऊर्जाओं को प्राप्त करने के लिए ही सूर्योदय के समय पूर्वाभिमुख होकर सूर्य - उपासना , सूर्य नमस्कार , संध्या वंदन और हवन - पूजा आदि किए जाते हैं । यह वैदिक परंपरा है । वेदों में ओज , तेज , ब्रह्मवर्चस् के लिए सूर्योपासना का विधान है ।
बहुत अच्छी जानकारी🙏🙏🙏🙏
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