गंगा नदी अति पावन क्यों हैं ?
नमस्कार मित्रों ,
मैं जितेन्द्र सकलानी एक बार पुन: प्रस्तुत हुआ हूँ आप लोगो के समक्ष अपने नए ब्लॉग के साथ अपने धर्मग्रंथो पर आधारित कुछ बताये गए वाक्य, अथवा नियमो के विषय में कुछ जानकरी लेकर....
मैं जितेन्द्र सकलानी एक बार पुन: प्रस्तुत हुआ हूँ आप लोगो के समक्ष अपने नए ब्लॉग के साथ अपने धर्मग्रंथो पर आधारित कुछ बताये गए वाक्य, अथवा नियमो के विषय में कुछ जानकरी लेकर....
आपने अपने बड़े बुजुर्गों को कई बार कहते सुना होगा की वह किसी पवित्र तीर्थ में जाकर गंगा स्नान करके आना चाहते है या अन्य जगह आपको सुनने को मिला होगा की गंगा नदी बड़ी ही पावन नदी हैं क्यूँ की गंगा नदी को भारत वर्ष में ही नहीं अपितु समस्त संसार में बड़ा ही पवित्र मन गया हैं परन्तु क्या आपने कभी सोचा है की ऐसा क्यूँ ?
तो आपके इस प्रश्न का उत्तर लेकर मैं पुन: प्रस्तुत हुआ हूँ अपने ब्लॉग के माध्यम से
शास्त्रों में कहा गया है कि- औषधि : जाह्नवी तोयं वैद्यो नारायणो हरि .
अर्थात् समस्त आध्यात्मिक रोगों की औषधि गंगा जल है और इन रोगों से ग्रस्त रोगियों के चिकित्सक श्रीहरि ( नारायण ) हैं । गंगाजी की महत्ता प्रकट करते हुए स्कंद पुराण में काशी खण्ड के 27 वें अध्याय के 49 वें श्लोक में कहा गया-
अनिच्छयापि संस्पृष्टो दहनो हि यथा दहेत् ।
अनिच्छयापि संस्नाता गंगा पापं तथा दहेत् ॥
अर्थात् जिस प्रकार अग्नि का स्पर्श करने पर बिना इच्छा के भी अग्नि जला देती है . उसी प्रकार गंगा के जल में स्नान करने पर बिना इच्छा किए हुए ही गंगा सभी पापों को धो देती है । महाभारत में वनपर्व के 85 वें अध्याय के श्लोक 89 , 90 , 93 में गंगा के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा गया है
यद्यकार्यशतं कृत्वा कृतं गंगाभिषेचनम् ।
सर्वं तत् तस्य गंगाम्भोः दहत्यग्निरिवेन्धनम् ॥
सर्वं कृतयुगे पुण्यं त्रेतायां पुष्करं स्मृतम् ।
द्वापरेऽपि कुरुक्षेत्रं गंगा कलियुगे स्मृता ॥
पुनाति कीर्तिता पापं दृष्टा भद्रं प्रयच्छति ।
अवगाढा च पीता च पुनात्यासप्तमं कुलम् ।।
अर्थात् अग्नि जिस प्रकार ईधन को जला देती है , उसी प्रकार सैकड़ों निषिद्ध कर्म करने के पश्चात् भी गंगाजल में स्नान करने पर सभी पाप नष्ट हो जाते हैं । सतयुग में सभी तीर्थ पुण्य फल प्रदान करने वाले थे । त्रेतायुग में पुष्कर , द्वापर युग में कुरुक्षेत्र और कलियुग में गंगाजी की महिमा का विशेष गुणगान किया गया है । गंगा का नाम लेने मात्र से ही वह पापी प्राणी को पावन कर देती है गंगा के दर्शन से सौभाग्य प्राप्ति होती है और गंगाजल में स्नान करने या गंगाजल ग्रहण करने से सात पीढ़ियों का उद्धार हो जाता है ।
अग्निपुराण के अनुसार गंगा सद्गति प्रदान करने वाली है । जो प्राणी नित्य गंगाजल का सेवन करते हैं , वे अपने वंश सहित भवबाधा से मुक्त हो जाते हैं । गंगा में स्नान करने , गंगाजल का सेवन करने और गंगा नाम का श्रद्धा - भक्ति से लेने पर अनेक मनुष्य पापमुक्त और पुण्य गति को प्राप्त हुए हैं । सृष्टि में गंगा के समान अन्य कोई जल तीर्थ नहीं है ।
पद्मपुराण के अनुसार गंगा के प्रताप से प्राणी के जन्म - जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं और अनन्त पुण्यों की प्राप्ति होती है , उसे सहज ही स्वर्गलोक की भी उपलब्धि होती है ।
गंगाजल पर किए गए विभिन्न शोधों से स्पष्ट हुआ है - कि गंगाजल को वर्षों तक रखने पर भी यह खराब नहीं होता और न ही इसमें से दुर्गध आती है । गंगाजल में स्वास्थ्यवर्धक तत्वों की बहुलता पाई जाती है , यही कारण है कि यह पीने में मीठा , अमृत - तुल्य , पाचक , त्रिदोषों का नाश करने वाला , हृदय के लिए हितकारी और आयुवर्द्धक होता है ।
इसमें पर्याप्त मात्रा में रासायनिक लवण यथा - कैल्सियम , पोटैशियम , सोडियम आदि पाए जाते हैं । इनके अलावा गंगाजल में 45 प्रतिशत क्लोरीन भी होता है । यह जल में कीटाणुओं को पनपने से रोकता है । गंगाजल में अम्लीयता और क्षारीयता लगभग एक समान ही होती है ।
वैज्ञानिक तथ्य के अनुसार जब किसी व्यक्ति की जीवनी शक्ति समाप्त होने लगे तो उसे गंगाजल पिला देना चाहिए । इससे उस व्यक्ति की जीवनी शक्ति आश्चर्यजनक ढंग से बढ़ जाएगी । इसके साथ ही रोगी व्यक्ति को स्वयं में एक प्रकार की अनुपम सात्विक आनन्द की लहरें उमड़ती अनुभूत होंगी । यही कारण है कि मरणासन्न व्यक्ति के मुख में गंगाजल डालने की परम्परा दीर्घ काल से ही चली आ रही है ।
आशा करता हूं आपको मेरा यह ब्लॉग पसंद आया होगा यदि इसमें किसी भी प्रकार से कोई त्रुटि पाई जाती है तो दुर्गा भवानी ज्योतिष केंद्र की ओर से मैं जितेंद्र सकलानी आपसे क्षमा याचना करता हूं एवं यदि आप इस विषय में कुछ और अधिक जानते हैं और हमारे साथ यदि उस जानकारी साझा करना चाहें तो आप e-mail के माध्यम से या कमेंट बॉक्स में कमेंट के माध्यम से हमे बता सकते हैं हम आपकी उस जानकारी को अवश्य ही अपने इस जानकारी में आपके नाम सहित जोड़ेंगे
हमारा ईमेल एड्रेस है:------ www.durgabhawani9634@gmail.com
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें
आपके प्रोसहन हेतु धन्यवाद हम आपकी सेवा में हमेशा तत्पर हैं एवं हमारा पर्यास है की ऐसी ही महत्वपूर्ण एवं शास्त्रों में लिखित सटीक जानकारी हम आप तक पहुंचाएं एवं आप भी हमारे नियमित पाठक बने रहें !