माला में मनके 108 ही क्यों होते हैं ?


नमस्कार मित्रों ,
                        मैं जितेन्द्र सकलानी एक बार पुन: प्रस्तुत हुआ हूँ आप लोगो के समक्ष अपने नए ब्लॉग के साथ अपने धर्मग्रंथो पर आधारित कुछ बताये गए  वाक्य, अथवा नियमो के विषय में कुछ जानकरी लेकर....
आप सभी लोगों ने अपने जीवन काल में कभी ना कभी जप तो किया ही होगा और जिन्होंने जप नहीं किया है उन्होंने जप होते हुए देखा तो अवश्य ही होगा जिन्होंने जप होते हुए नहीं देखा उन्होंने अपने जीवन काल में माला को तो अवश्य ही देखा होगा और गौर किया होगा की माला में 108 दाने होते हैं जिन्हें मनके कहा जाता है परंतु क्या आपने कभी सोचा है की माला में 108 मनके ही क्यों होते हैं ? तो आइए जानते हैं आपके इस प्रश्न का उत्तर इस ब्लॉग के माध्यम से-


माला में मनकों के 108 ही होने के संदर्भ में अनेक मान्यताएं हैं । योग चूड़ामणि उपनिषद् में कहा गया है- षट्शतानि दिवारात्रौ सहस्राण्येकं विंशति । 
एतत् संख्यान्तितं मंत्र जीवो जपति सर्वदा ।। 

अर्थात् प्राणी चौबीस घण्टों में 21,600 बार श्वास लेता है । चौबीस घंटे में से बारह घंटे दिनचर्या में व्यतीत हो जाते हैं , तब शेष बारह घंटे परमात्मा के जप के लिए होते हैं । इन बारह घंटों में व्यक्ति 10,800 श्वासें लेता है । सामान्यत : कोई भी व्यक्ति इतना समय जप के लिए नहीं दे पाता । इसी कारण इस संख्या में से अंतिम दो शून्य हटाकर शेष संख्या 108 श्वासों में परमात्मा का जप किया जाता है । यही कारण है कि माला में मनके 108 ही होते हैं । 

♦️ एक अन्य मान्यता के अनुसार सूर्य एक वर्ष में 2,16,000 कलाएं बदलता है । छह मास सूर्य उत्तरायन में और छह मास दक्षिणायन में रहता है । इस प्रकार उत्तरायन और दक्षिणायन के लिए सूर्य की कलाएं 1,08,000 होती हैं । प्रत्येक हजार कला के लिए एक बार परमात्मा का जाप करने के आधार पर 108 बार जाप करना पडता है।
इसी कारण माला में 108 मनके होते हैं ।

♦️ तीसरी मान्यता के अनुसार ज्योतिषशास्त्र ने अपनी सुविधा के आधार पर ब्रह्माण्ड 12 भागों में बांटा है । इन बारह भागों को राशि नाम दिया गया है । ज्योतिषशास्त्र में मुख्यतः नौ ग्रह ( नवग्रह ) माने जाते हैं । 12 राशियों और 9 ग्रहों के गुणनफल से प्राप्त संख्या 108 सम्पूर्ण सृष्टि का प्रतिनिधित्व करती है और सम्पूर्ण सृष्टि का संचालक परमात्मा है । इस प्रकार 108 बार परमात्मा का जप करने से सम्पूर्ण सृष्टि की समस्त शक्तियों का जप होने के कारण ही माला में 108 मनके निश्चित किए गए हैं ।

♦️चौथी मान्यता के अनुसार भारतीय ऋषि - मुनियों ने 27 नक्षत्रों की खोज की थी । उनमें से प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं । इस प्रकार 27 नक्षत्रों के कुल 108 चरण हुए । इनके आधार पर भी माला में 108 मनके निर्धारित किए गए हैं । 108 अंक को सम्मान का सूचक भी माना गया है । 
शिवपुराण के पंचाक्षर मंत्र जप अध्याय के श्लोक 29 में कहा गया है -

अष्टोत्तरशतं स्यावृत्तमोत्तमम् । 
शतसंख्योत्तमा पञ्चाशद् मध्यमा ॥ 

अर्थात् 108 दानों की माला सर्वश्रेष्ठ , 100 दानों की माला श्रेष्ठ और 50 दानों की माला मध्यम होती है ।

 माला जपने के औचित्य पर प्रकाश डालते हुए शिवपुराण के श्लोक 28 में कहा गया है-
कि अंगूठे से जप करने पर मोक्ष मिलता है , तर्जनी से जप करने पर शत्रु का नाश होता है , मध्यमा से जप करने पर धन - सम्पत्ति में वृद्धि होती है और अनामिका से जप करने पर मानसिक शान्ति मिलती है । माला के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए अंगिरा स्मृति में कहा गया है 

विना दमैश्चयकृत्यं सच्चदानं विनोदकम् ।
असंख्यता तु यजप्तं तत्सर्वं निष्फलं भवेत् ॥ 
अर्थात् बिना कुश के अनुष्ठान , बिना जल - स्पर्श के दान और बिना माला के संख्याहीन जप का कोई फल प्राप्त नहीं होता । जप के लिए माला रुद्राक्ष , वैजयंती , स्फटिक , मोती आदि में से कोई भी ली जा सकती है । रुद्राक्ष में चुम्बकीय शक्ति होती है । साथ ही कीटाणुनाशक शक्ति भी होती है । 

 आशा करता हूं आपको मेरा यह ब्लॉग पसंद आया होगा यदि इसमें किसी भी प्रकार से कोई त्रुटि पाई जाती है तो दुर्गा भवानी ज्योतिष केंद्र की ओर से मैं जितेंद्र सकलानी आपसे क्षमा याचना करता हूं एवं यदि आप इस विषय में कुछ और अधिक जानते हैं और हमारे साथ यदि उस जानकारी साझा करना चाहें तो आप e-mail के माध्यम से या कमेंट बॉक्स में कमेंट के माध्यम से हमे बता सकते हैं हम आपकी उस जानकारी को अवश्य ही अपने इस जानकारी में आपके नाम सहित जोड़ेंगे

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