गर्भाधान संस्कार क्यों ?
गर्भाधान संस्कार वेदों द्वारा अनुमोदित है । शिशु का भावी जीवन इसी संस्कार पर निर्भर है । इसलिए इसका बड़ा महत्व है । इस गर्भाधान संस्कार का उद्देश्य माता - पिता के शारीरिक - मानसिक दोषों से संतान को मुक्त करना है । मनुस्मृति में भी इसे बीज व क्षेत्र की शुद्धि का मुख्य कारक माना गया है । यथा- निषेकाद्वैजिकं चैनो गार्भिकञ्चापमृज्यते । क्षेत्रसंस्कार सिद्धिश्च गर्भाधानफलं स्मृतम् ॥ विज्ञान के अनुसार भी गर्भाधान के समय स्त्री - पुरुष जिस भाव से भावित होते हैं , उसका प्रभाव उनके रज - वीर्य पर अवश्य ही पड़ता है । अत : उस रज - वीर्य से उत्पन्न संतान में माता - पिता के वे भाव स्वतः ही दिखाई देते हैं- आहाराचारचेष्टाभिर्यादृशोभिः समन्विती । स्त्रीपुंसौ समुपेयातां तयोः पुत्रोऽपि तादृशः । । ( सुश्रुत संहिता शरीर 2 / 46 / 50 ) अर्थात् स्त्री और पुरुष जैसे आहार , व्यवहार तथा चेष्टा वाले होकर समागम करते हैं , उनका पुत्र भी वैसे ही स्वभाव वाला होता है । देव वैद्य धन्वन्तरि का कहना है कि ऋतु स्नान के बाद स्त्री जैसे पुरुष का दर्शन करती है , वैसा ही पुत्र उत्पन्न होता