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जानिए क्या हैं होलिका दहन का शुभ मुहूर्त?

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फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है। यह पूर्णिमा भद्रा रहित प्रदोषकाल को व्याप्त करती हो।   दुर्गा भवानी ज्योतिष केंद्र के माध्यम से ज्योतिषाचार्य जितेन्द्र सकलानी जी के द्वारा वाणी भूषण पंचांग के  अनुसार - संवत् 2075 फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा दिनांक 20/03/2019 को प्रदोष व्यापिनी है। इस दिन प्रदोष में भद्रा भी विद्यमान है। यह भद्रा मृत्यु लोक की है। अत: पूर्ण रूप से वर्जित है। शास्त्रकारों का मत है, भद्रा की व्याप्ति प्रदोषपर्यंत रहने पर भद्रा उपरान्त होलिका दहन करना श्रेयस्कर है। इस दिन भद्रा का पुच्छ काल सूर्यास्त से पूर्व प्राप्त होने से होलिका दहन के लिए यह समय उचित नहीं हो सकता। अत: भद्रा की समाप्ति रात्रि 09:01 के बाद ही होलिका दहन होना चाहिए।

जानिए क्या होते हैं होलाष्टक ? क्यों हो जाते हैं होलाष्टक में शुभ कार्य निषेध ?

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चन्द्र मास के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस होली के पावन पर्व के आने की सूचना होलाष्टक से प्राप्त होती है और होलाष्टक को होली पर्व की सूचना लेकर आने वाला एक हरकारा भी कहा जा सकता है. " होलाष्टक " के शाब्दिक अर्थ पर जायें, तो होल + अष्टक अर्थात होली से पूर्व के आठ दिन, यह जो पूर्व के आठ दिन होते है, वहीं होलाष्टक कहलाते है। सामान्य रुप से देखा जाये तो होली एक दिन का पर्व न होकर पूरे आठ दिनों का त्यौहार है. दूलेण्डी के दिन रंग और गुलाल के साथ इस पर्व का समापन होता है. अब क्यूं की इस उत्सव की शुरुआत होलाष्टक से प्रारम्भ होकर दूलेण्डी तक रहती है. इसके कारण प्रकृति में खुशी और उत्सव का माहौल रहता है. इस वर्ष 2020 में दुर्गा भवानी ज्योतिष केंद्र के मध्यम से ज्योतिषाचार्य जितेन्द्र सकलानी जी के अनुसार  वाणी भूषण वार्षिक पंचाग के अनुरूप बताया गया है कि 02 मार्च 2020  से 10 मार्च, 2020 के मध्य की अवधि होलाष्टक पर्व की रहेगी. इस दिन से होली उत्सव के साथ-साथ होलिका दहन की तैयारियां भी शुरु हो जाती है. होलिका दहन में होलाष

जानिए शिवार्चन से पूर्व कैसे देखें शिव वास

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जिस प्रकार किसी अनुष्ठान को संपन्न कराने हेतु हवन किया जाता है तो सर्वप्रथम उसमें अग्निवास को देखा जाता है उसी प्रकार जब कभी भगवान शंकर का शिव अर्चन किया जाता है तो उससे पूर्वक शिव वास देखना अनिवार्य होता है शिव वास निकालने की विधि कुछ इस प्रकार है

हो रहा है राहु केतु का राशि परिवर्तन, जानिए किन-किन राशियों के लिए कैसा रहेगा इसका प्रभाव?

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ज्योतिष में राहू-केतु का बहुत अधिक महत्व माना गया है। अनुसंधानिक दृष्टि से देखा जाए तो भले ही राहु-केतु खगोलीय दृष्टि में कोई ग्रह नहीं हैं परंतु ज्योतिष में इन्हें छाया ग्रह की मान्यता मिली है जिन्हें अंग्रेजी में  ( NORTH NODE OF THE MOON & SOUTH NODE OF THE MOON)  भी कहा जाता है। राहु के साथ केतु का भी नाम लिया जाता है क्योंकि दोनों एक दूसरे के विपरीत बिंदुओं पर समान गति से गोचर करते हैं। राह-केतु को जन्म से ही वक्री ग्रह माना गया है। परिचय राहु-केतु खगोलीय दृष्टि के अनुसार पृथ्वी का सूर्य के चारों ओर परिभ्रमण का मार्ग और चंद्रमा के पृथ्वी के चारों ओर घूमने का मार्ग अलग-अलग है । जंहा यह दोनों मार्ग एक दूसरे को काटते हैं उस बिंदु को राहु कहा गया है। अर्थात चंद्र जब अपने मार्ग पर चलता हुआ भूचक्र के उस स्थान पर पहुंचे जिस को पार करने पर वह उत्तर की ओर जाएगा वह बिंदु राहु कहलाता है और जब उस बिंदु पर पहुंचे जिसे पार करने पर वह दक्षिण की ओर चला जाएगा उस बिंदु को केतु कहा जाता है। परिचय राह-केतु पौराणिक ग्रंथों के अनुसार पौराणिक ग्रंथों में राहु एक असुर हुआ करता था जिसने समुद

जानिए क्या है माघ पूर्णिमा का महत्व..? कैसे करें भगवान कि पूजा अर्चना ?

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पौराणिक तथा सनातनिय धार्मिक दृष्टि से माघ मास को विशेष स्थान प्राप्त है। भारतीय संवत्सर के आधार पर चंद्रमास का ग्यारहवां और  सौरमास का  दसवां मास माघ मास कहलाता है। मघा नक्षत्र से युक्त चंद्रमा के पूर्णिमा में उदित होने के कारण इस माह का नाम का माघ रखा गया। ऐसी मान्यता है कि इस मास में शीतल जल में डुबकी लगाने वाले पापमुक्त होकर स्वर्ग लोक जाते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि माघी पूर्णिमा पर स्वंय भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करतें है अत: इस पावन समय में गंगाजल का स्पर्शमात्र भी कर लेने से स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है ।  इसके सन्दर्भ में यह भी कहा जाता है कि इस तिथि में भगवान नारायण क्षीर सागर(दूध का सागर) में विराजते हैं तथा गंगा जी क्षीर सागर(दूध के सागर) का ही रूप है| प्रयाग में प्रतिवर्ष माघ मेला लगता है। हजारों भक्त गंगा-यमुना के संगम स्थल पर माघ मास में पूरे तीस दिनों तक (पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा तक) कल्पवास करते है। ऐसी मान्यता है कि इस मास में जरूरतमंदों को सर्दी से बचने योग्य वस्तुओं का, जैसे- ऊनी वस्त्र, कंबल और आग तापने के लिए लकडी आदि का दान करने से अनंत पुण्य

चमत्कारी पत्थर है सुलेमानी हकीक। जानिए सुलेमानी हकीक के फायदे।

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 जादुई पत्थर सुलेमानी हकीक कई समस्याओं का सस्ता और मजबूत उपाय. सुलेमानी हकीक के चमत्कारी और अदभुत लाभ             👇👇 1⃣सुलेमानी हकीक जो आपको लोगो की बुरी नजर से बचा कर रखता है । 2⃣आपका व्यवसाय काला जादू या टोना - टोटका की वजह से मंदा चल रहा है तो सुलेमानी हकीक पत्थर उसका काट कर देता है और व्यवसाय में बढ़ोतरी होती है । 3⃣अगर पूर्ण प्रयास के बाद भी घर की उन्नती में बाधाऐं आ रही हैं तो उन्नती के रास्ते खुलने लगते हैं | 4⃣अज्ञात शत्रु  आपको परेशान कर रहे हैं या कोई तंत्र-क्रिया आप पर करवा रहे हैं तो उस क्रिया से आपका बचाव करते हुऐ आपके शत्रु को परास्त करता है | उस शत्रु को आपके सामने शक्तिहीन बनाता है | 5⃣अगर आपकी सेहत सही नही रहती है या आपके परिवार में बार-बार कोई बीमार रहता है और दवाऐं भी बेअसर हो रहीं हैं तो उसको सुलेमानी हकीक धारण करवाइऐ उस से सेहत में शीध्र ही काफ़ी अच्छा सुधार होगा 6⃣सुलेमानी हकीक राहु, केतु और शनि द्वारा आ रही बाधाओ को दूर करता है और व्यक्ति को सफलता मिलने लगती है 7⃣नौकरी, तरक्की, और व्यवसाय में आ रही अनावस्यक अड़चनो को दूर करता है । 8⃣ये पत्थर  दुर

श्री यंत्र पूजन करने से मिलेंगे अनेकों लाभ ।जानिए पूजन कि विधि।

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* प्रतिदिन करें श्रीयंत्र की पूजा, मिलेंगी अद्भुत शक्तियां और अपार धन प्रतिदिन श्रीयंत्र के दर्शन मात्र से ही इसकी अद्भुत शक्तियों का लाभ मिलना शुरू हो जाता है, ऐसा पौराणिक शास्त्रों में उल्लेख है। अत: मनुष्‍य को चाहिए कि वे हर रोज श्रीयंत्र के दर्शन और पूजन का लाभ अवश्य लें। इतना ही नहीं नियमित मां महालक्ष्मी के मंत्र जाप करने अथवा शुक्रवार के दिन महालक्ष्मी और श्रीयंत्र का पूजन करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होकर अपने भक्तों को अद्भुत शक्तियां और अपार धन देती है। आइए जानें कैसे पाएं वे अद्भुत शक्तियां और खूब सारा धन :- * श्रीयंत्र को मंदिर या तिजोरी में रखकर प्रतिदिन पूजा करें। * इस यंत्र की पूजा से मनुष्य को धन, समृद्घि, यश, कीर्ति की प्राप्ति होती है। * रुके कार्य बनने लगते हैं। व्यापार की रुकावट खत्म होती है। * जन्मकुंडली में मौजूद विभिन्न कुयोग श्रीयंत्र की नियमित पूजा से दूर हो जाते हैं। * इसकी कृपा से मनुष्य को अष्टसिद्घियां और नौ निधियों की प्राप्ति होती है। * प्रतिदिन कमल गट्टे की माला पर श्रीसूक्त के 12 पाठ के जाप करने से लक्ष्मी प्रसन्न रहती

जानिए किस ग्रह के आधार पर करें कौन सा व्यवसाय ? सफलताएं चूमेगी आपके कदम ।

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जानिए किस ग्रह के आधार पर करें कौन सा व्यवसाय ?सफलताएं चूमेगी आपके कदम । आज के भागदौड़ भरी जीवन की दिनचर्या में हर व्यक्तित्व तरक्की प्राप्त करना चाहता है जिसके लिए वह अलग-अलग मार्ग एवं उद्देश्यों का चयन भी करता है परंतु कई बार अत्यधिक परिश्रम के उपरांत भी उनको सफलता प्राप्त नहीं हो पाती । कई बार व्यक्ति व्यापार करने का इच्छुक तो होता है परंतु वह या नहीं जान पाता कि उसे किस प्रकार का व्यापार करना चाहिए?  इस बात को ध्यान में रखते हुए आज हम जानेंगे *दुर्गा भवानी ज्योतिष केंद्र* के माध्यम से ज्योतिष आचार्य जितेंद्र सकलानी जी के द्वारा की किस ग्रह के आधार पर हमें कौन सा व्यापार अथवा व्यवसाय करना चाहिए । *सूर्य से संबंधित व्यापार है* सरकारी नौकरी , सरकारी सेवा , उच्च स्तरीय प्रशासनिक सेवा , मजिस्ट्रेट , राजनीति , सोने का काम करने वाले , जौहरी , फाईनान्सर , प्रबन्धक ,  , राजदूत , चिकित्सक (फिजिशियन), दवाइयों से संबंधी  मैनेजमेंट ,  , उपदेशक , मंत्र कार्य , फल विक्रेता , वस्त्र , घास फूस ( नारियल रेशा , बांस   तृण आदि  ) से निर्मित सामाग्री ,  तांबा , स्वर्ण, माणिक , सींग य