तिलक क्यों लगाते है ?
तिलक , त्रिपुंड्र , टीका और बिंदिया आदि का सम्बन्ध मस्तिष्क से है । इसीलिए तिलकादि मस्तक ( ललाट ) के मध्य भाग में लगाएं जाते हैं । कठोपनिषद् में तिलक लगाने के सम्बन्ध में बताया गया है कि मस्तक के ठीक मध्य एक प्रमुख नाड़ी सुषुम्ना है ।
इसी नाड़ी से ऊर्ध्वगतीय मोक्ष मार्ग निकलता है । अन्य नाड़ियां निकलने के बाद प्राय : शरीर में चारों ओर फैल जाती हैं , जबकि सुषुम्ना का मार्ग ऊर्ध्व की ओर ही रहता है । प्रत्येक व्यक्ति के मस्तक पर सुषुम्ना नाड़ी का ऊर्ध्व भाग एक गहरी रेखा के रूप में दिखाई देता है । सुषुम्ना नाड़ी को केंद्र में मानकर ही भृकुटि और ललाट के मध्य भाग में तिलक लगाया जाता है । तिलक किए बिना स्नान , होम , तप , देव - पूजन , पितृकर्म और दान आदि पुण्य कर्मों का फल भी व्यर्थ हो जाता है ।
ब्रह्मवैवर्त पुराण के ब्रह्मपर्व के 26 वें श्लोक में कहा गया है-
स्नानं दानं तपो होमो देवतां पितृकार्ये च ।
तत्सर्वं निष्फलं याति ललाटे तिलकं विना ।
ब्राह्मणास्तिलकं कृत्वा कुर्यात् संध्यान् तर्पयम् ॥
स्कंद पुराण में तो यह भी बताया गया कि किस उंगली से तिलक लगाने से क्या फल मिलता है यथा-
अनमिका शांतिदा प्रोक्ता मध्यामायुष्कारी भवेत् ।
अंगुष्ठः पुष्टिदः प्रोक्ता तर्जनी मोक्षदायनी ।।
अर्थात् अनामिका से तिलक लगाने से शांति , मध्यमा से आयु , अंगूठे से स्वास्थ्य व तर्जनी से तिलक लगाने पर मोक्ष मिलता है ।
भौंहों के मध्य में आज्ञाचक्र की स्थिति मानी गई है और इस स्थान पर तिलक आदि धारण करने पर यह चक्र जागृत होने लगता है । फलतः मस्तिष्क की क्रियाशीलता और अंतर्मन की संवेदनशीलता में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हो जाती है । भिन्न - भिन्न देवी - देवताओं के उपासक धर्मकृत्य के समय अलग - अलग प्रकार के तिलक धारण करते हैं ।
तिलक रहस्य में कहा गया है -
ब्रह्मा को बड़पत्र जो कहिए , विष्णु को दो फाड़ ।
शक्ति की दो बिन्दु कहिए , महादेव की आड़ ॥
ब्रह्मा के उपासक तीन उंगलियों से , विष्णु के उपासक दो पतली रेखाओं के रूप में ऊर्ध्व तिलक लगाते हैं । शक्ति के उपासक दो बिन्दी ( शिव - शक्ति ) के रूप में तिलक करते हैं । भगवान शिव के उपासक त्रिपुंड्र ( आड़ी तीन रेखाओं ) के रूप में तिलक लगाते हैं ।
तिलक धारण से मस्तिष्क में शान्ति और शीतलता का अनुभव होता है तथा बीटाएंडोरफिन और सेराटोनिन नामक रसायनों का स्राव सन्तुलित मात्रा में होने लगता है । इन रसायनों की कमी से उदासीनता और निराशा के भाव पनपने लगते हैं । चंदन का तिलक लगाने से मस्तिष्क में तरो - ताजगी आती है और ज्ञान - तन्तुओं की क्रियाशीलता को बढ़ाती है । कुमकुम का तिलक तेजस्विता बढ़ाता है । मिट्टी के तिलक से संक्रामक कीटाणुओं से मुक्ति मिलती है । इसी प्रकार भस्म शीश पर धारण करने से सौभाग्य वृद्धि होती है ।
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