जानिए शनि ग्रह के रत्न नीलम की विशेषताएं
शनि - नीलम
शनि का रत्न नीलम है । अतः इसे शौरीरत्न भी कहते हैं । भारतीय वाङमय में नीलम को नीलमणि , नील , नीलाश्म या इन्द्रनील कहा गया है । आंग्ल भाषा में इसको BLUE SAPPHIRE कहते हैं । कछ लोग केवल ‘ सैफायर ' भी कहते हैं । यह प्रायः रॉयल ब्लू या हलके वायोलेट कलर में होता है । इनके अतिरिक्त नीलम का किसी और रंग का होना या पतीत होना नीलम का दोष है । कश्मीर में पाडर की खान का नीलम सर्वोत्तम माना जाता है । इसे ' मयुरनील ' भी कहते हैं , क्योंकि इसका रंग मोर की गर्दन से मिलता है । कहीं - कहीं लाल रंग की चमक वाला नीलम भी मिलता है । इसे ‘ खूनी नीलम ' कहते हैं । यह निम्न कोटि का रत्न है । सफेद झलक वाला नीलम ' ब्राह्मण , पीली झलक वाला शूद्र माना गया है । नीलम एक कांतिवान , चिकना व पारदर्शी रत्न है जो बिजली के प्रकाश में भी अपना रंग नहीं बदलता । नीलम की गिनती माणिक्य की भांति महारत्नों में होती है । नीलम में जाल या डोरा पड़ा हो तो उसे त्याग देना चाहिए । नीलम सदैव निर्दोष पहनना चाहिए । दोषयुक्त नीलम विभिन्न उपद्रव खड़े करता है तथा देश से निष्कासन व दरिद्रता लाता है ।
गुण व लाभ:
नीलम तावीज के तौर पर बांधने से मंत्र , जादू आदि के असर को दूर करता है ; पवित्रता की रक्षा करता है ; शत्रुओं के षड्यन्त्र या मित्रों के विश्वासघात की सूचना अपने रंग को फीका करके देता है । नीलम को पानी में डुबोकर उस पानी से बिच्छू के दंश को धोने से विष दूर होता है । नेत्र रोगों में नीलम धारण करना लाभदायक होता है । नीलम हृदय को बल देता है । नीलम को शनि की धातु लोहे में धारण करना चाहिए । कुछ परिस्थितियों में नीलम चांदी अथवा सोने में भी पहना जाता है । नीलम दाएं हाथ की मध्यमा उंगली में पहना जाता है । नीलम के साथ माणिक , मोती व पुखराज नहीं पहनते । शनि के प्रभाव को यदि जानना चाहें तो नीलम धारण करने के दो - तीन महीने बाद नीलम को बकरी के दूध में डाल दें । दूध थोड़ी ही देर में काला पड़ जाएगा । दूध के कालेपन की मात्रा शनि की उन किरणों को दर्शाती है जो नीलम पर एकत्रित हो गई , किन्तु नीलम ने उन्हें आपके शरीर पर नहीं पड़ने दिया । नीलम को सदैव उपयुक्त ज्योतिषी के परामर्श के बाद पूर्ण सावधानी से शुभाशुभ की परीक्षा करने के बाद ही धारण करना चाहिए , क्योंकि यह हर किसी को रास नहीं आता । रास न आने की स्थिति ' में नीलम का उपरत्न धारण करें ।
परीक्षा विधिः
असली नीलम गाय के दूध में डाल देने पर दूध को हलकी नीली आभायुक्त कर देता है । नीलम के पास तिनका रखने से तिनका नीलम से चिपक जाता है । यह उत्तम नीलम की परीक्षा है । नीलम को कांच के गिलास में पानी भरकर उसमें डुबो देने पर यह पानी में से नीली किरणे बाहर फेंकता है ।
उपरत्नः
नीलम के उपरत्न नीली , फिरोजा , कटैला , लाजवर्त आदि हैं । इनमें फिरोजा यद्यपि गुम ( अपारदशी ) उपरत्न है तो भी इसमें चमक होती है । फिरोजा भी विपत्ति की सूचना रंग बदलकर ( प्रायः फिरोजी रंग से हरा या गुलाबी हो जाता है ) दे देता है । बहुत से विद्वानों के अनुसार यह रंग बदलकर व चटककर विपत्ति की सूचना देता है । फिरोजा को संस्कृत में ' हरिताश्म ' कहते हैं । इसे पहनने से खुशहाली आती है ।
धारण - विधिः
नीलम को श्रवण नक्षत्र , रिक्तातिथि , शनिवार व शनि की होरा में धारण करते हैं । नीलम का वजन तीन रत्ती से कम नहीं होना चाहिए । ( आमतौर पर साढ़े तीन से पांच रत्ती का नीलम पहना जाता है । ) रत्न - धारण से पूर्व शनि का मंत्र जाप ( ऊँ प्रां प्रीं प्रौं सः शनयै नमः ) कम - से - कम एक माला फेरकर करना चाहिए । साथ में ' शनिस्तोत्र का पाठ भी कर सकें तो और अच्छा है , शेष विधि पूर्व वर्णित है ।
कौन - कब पहने - नियमः
मकर या कुंभ लग्न होने पर , शनि की महादशा पीड़ा में , शनि कारक ग्रह होने के बावजूद पापाक्रांत , निर्बल या अस्त होने पर , शनि की साढ़े साती या ढैया होने पर योग कारक शनि के छठे , आठवें या बारहवें घर में होने से , शनि के साथ राहु व सूर्य अथवा मंगल व सूर्य अथवा केवल सूर्य होने पर नीलम धारण करते हैं ।
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