जानिए शुक्र ग्रह के रत्न हीरे की विशेषताएं।

शुक्र - हीरा 

स्वरूप व परिचयः 

शुक्र ग्रह का रत्न हीरा है । हीरे को संस्कृत में हीरक या वज्र कहते हैं । भारतीय साहित्य में इसे अभेद्य , सायक आदि नामों से भी पुकारा गया है । आंग्ल भाषा में हीरे के लिए DIAMOND शब्द प्रयुक्त होता है । यवनों में इसे ‘ अल्माज ' भी कहते हैं । जैसा कि सभी जानते हैं कि यह समस्त रत्नों में अति कठोर तथा कार्बन का अपरूप है ( हीरे को हीरा ही काट सकता है , यह इसकी कठोरता का सही उदाहरण है । ) पौराणिक संदर्भ में हीरे की उत्पत्ति बलि दैत्य की अस्थियों से हुई है । ( दांत से मोती , रक्त से माणिक , पित्त से पन्ना , आंख से नीलम , रज से वैदूर्प , नाखून से गोमेद , मांस से मूंगा , चर्म से पुखराज आदि उत्पन्न हुए हैं । वस्तुतः रत्न पृथ्वी के विकार ही हैं । ) हीरा बहुमूल्य , पारदर्शक , कठोर , अति चमकदार , निर्मल , चिकना , सुन्दर , सूर्य किरणों का प्रसारक तथा वर्णहीन होता है तथापि कुछ हीरों में सफेद , लाल , पीली , काली , झांई भी होती है । ( रत्न - वर्ण जाति के हिसाब से ये क्रमशः ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य व शूद्र जाति के हीरे होते हैं । वैसे हीरे के तीन भेद पुरुष , स्त्री व नपुंसक माने गए हैं । कहा जाता है कि हीरा कठोर होते हुए भी बकरी के ताजे दूध या उसके खून (ताजे) में डुबो देने के बाद आसानी से टूट जाता है । हीरे का वर्तनांक सबसे अधिक है । अतः यह सबसे ज्यादा चमकता है ।



गुण , लाभ व प्रभावः 

दोषयुक्त हीरा उपद्रव करता है । निर्दोष हीरे से बहुत लाभ होते हैं । हीरा घर में रखने से अकाल मृत्यु नहीं होती । व्याधि , भय , नष्ट होते हैं , पुत्र उत्पन्न होता है , पवित्रता आती हैं ; शत्रुनाश होता है , युद्ध में अभय प्राप्त होता है । गर्भवती अपने पेट पर इसे धारण करे तो गर्भ का कल्याण होता है । ब्राह्मण जाति का हीरा ज्ञान विद्या , आत्म - शांति व दर्शनशास्त्र सम्बन्धी ज्ञान का प्रदाता है । क्षत्रिय जाति का हीरा बल , विजय , यौवन व राज्य प्राप्त कराता है । वैश्य जाति का हीरा व्यापार , जुए , लाटरी आदि में लाभ कराता है । शूद्र जाति का हीरा यश व सुख प्राप्त कराता है । हीरा धारण करने से सूर्य , अग्नि , तड़ित विद्युत का भय आदि नहीं रहता । जंगली पशुओं का भय भी नहीं रहता तथा लक्ष्मी , ऐश्वर्य , भोग , मंगल होता है । हीरे को चाट या निगल लेने से मृत्य भी हो जाती है । अतः पहले राजा - रानियों के आभूषणों में हीरे का संदेव महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है । हीरा भूत - प्रेत आदि का भय भी दूर करता है , किन्तु ‘ शुक्र नीति के अनुसार पुत्र की इच्छा करने वाली स्त्री को हीरा धारण नहीं करना चाहिए । आयुर्वेद में हीरा - भस्म का बहुत प्रयोग होता है ।

परीक्षा - विधि तथा उपरत्न

हीरे को धूप में रखने से यह बहुत तीव्रता से जगमगाता है , अन्धकार में भी चमकता है । ऐसा कहा जाता है कि पिघले हुए गाय के घी में असली हीरा डाल देने से घी जम जाता है । हीरा एक बहुमूल्य रत्न है । अतः इसे स्थाई रूप में धारण करने से पूर्व शुभाशुभ परीक्षा अवश्य कर लेनी चाहिए । हीरे के उपरत्न सफेद पुखराज , स्फटिक ( सात रत्ती ) , उदडक , वैक्रांत , दांतला तथा श्वेत वज़ आदि हैं ।

धारण - विधिः 

हीरे को चांदी या प्लेटिनम धातु में दाहिने हाथ की अनामिका में धारण किया जाता है । हीरे के साथ माणिक्य , मोती , मूंगा या पुखराज नहीं पहना जाता । हीरे को शुक्रवार के दिन , रोहिणी नक्षत्र में , शुक्रवार की होरा में , नन्दातिथियों में पहना जाता है । विधि पूर्व वर्णित है केवल मंत्र जाप शुक्र का ( ऊ द्रां द्रीं द्रौं सः शुक्राय नमः ) पूरी एक माला फेरकर करना चाहिए ।

कौन - कब पहने - नियमः 

शुक्र ग्रहपीड़ा में , वीर्य - शुक्र सम्बन्धी रोगों में , शुक्र के निर्बल व अशुभ होने पर , शुक्र के साथ पाप ग्रह होने पर , वृषभ या तुला लग्न होने पर ,  शुक्र की महादशा या अन्तर्दशा होने पर योग कारक शुक्र होने पर हीरा धारण किया जाता है । हीरे का वजन अपनी आर्थिक सामर्थ्य के अनुसार रखें तथा हीरा या हीरे का कोई भी उपरत्न न धारण कर पाने की स्थिति में भी चांदी का छल्ला धारण - विधि द्वारा अभिमंत्रित करके पहन लेना चाहिए , क्योंकि शुक्र की धातु चांदी है ।

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