जानिए बृहस्पति के नग पुखराज की विशेषताएं।

बृहस्पति-
 पुखराज

परिचय स्वरूपः

बृहस्पति का रत्न पुखराज है । पुखराज को भारतीय ग्रन्थों में पीतमणि , पुष्पराज व जीवरत्न आदि नामों से सम्बोधित किया गया है । आंग्ल भाषा में पुखराज को YELLOW SAPPHIRE कहा जाता है । बहुत से लोग इसे TOPAZ के नाम से भी पुकारते हैं , यह स्वच्छ , पीला व हलकी सफेद कांति वाला पारदर्शी रत्न है । पीतकर्णिकार पुष्प के रंग का पुखराज जो कसौटी पर घिसने के बाद और भी चमकता है सर्वोत्तम कहा गया है । शुद्ध पुखराज रंगहीन होता है , उसको WITLS SAPPHIRI कहा जाता है । बर्मा के पुखराज श्रेष्ठ माने गए हैं । पुखराज में पीले रंग में भी विभिन्न भेद हैं कन्हेर के फूल की भांति , अम्लताज़ के फूल की भाति , सरसों के फूल की भाति , अमलताज के फूल की रंग की भाति सरसों के फूल की भांति, मलमल के रंग की भांति, केसर की बूटी के रंग की भाति आदि विभिन्न रंग इसके कहे गए हैं । इसको स्वर्ण में धारण किया जाता है ।



गुण व लाभः

पुखराज मन को प्रसन्न करता है तथा बहुत से रोगों को दूर करता है । आधा सीसी का दर्द , इन्फ्लूएंजा , कनपड़े आदि में पुखराज धारण करना लाभकारी है । पुखराज से उत्साह बढ़ता है । सरसों के फूल के रंग जैसा पुखराज ज्ञान व आत्म - शांति देने वाला माना गया है । बाण पुष्प के समान कांतिवाला पुखराज़ पवित्रता तथा पुत्र का दाता माना गया है । रंग मनोविज्ञान के अनुसार लाल रंग उत्तेजना व पीला रंग उत्साह को बढ़ाता है । इस हिसाब से भी पुखराज को धारण करने से उत्साह व प्रसन्नता बननी ही चाहिए । सफेद पुखराज से बुढ़ापा रोग दूर रहता है ( जो कि एक आश्चर्यजनक गुण है ) । ऐसा वर्णन आयुर्वेद में आया है और रत्नशास्त्र दिग्दर्शन भी इसकी पुष्टि करता हैं ।

मण्योऽपि च विज्ञेयाः सूत बन्धस्य कारकाः ।
देहस्य धारका नृणां जटा व्याधिविनाशकाः । ।

परीक्षा विधिः

श्रेष्ठ पुखराज की चमक कसौटी पर घिसने से और बढ़ती है । पुखराज को एक दिन - रात गाय के दूध में डालकर रखें । यदि निकालने पर चमक में अन्तर न आए तो असली है । सफेद कपड़े में पुखराज लपेटकर सूर्य की ओर करें । यदि कपड़ा पीली झाईयुक्त दिखाई पड़े तो पुखराज असली है । पुखराज को दाहिने हाथ की तर्जनी उंगली में धारण करना चाहिए । जिस प्रकार कनिष्ठा उंगली हस्त रेखा शास्त्र के अनुसार बुध की होती है उसी प्रकार तर्जनी उंगली बृहस्पति की होती है । अनामिका सूर्य की और मध्यमा शनि की होती है ।

उपरत्नः

पुखराज का उपरत्न , सुनैला ,धुनैला , स्वर्णास्य तथा सफेद पुखराज या स्फटिक है । पीला मोती भी धारण किया जा सकता है । पुखराज के साथ नीलम , हीरा . गोमेद , लहसुनिया वर्जित हैं ।

धारण - विधिः

समस्त रत्नों की धारण - विधि एक - सी है । केवल समय व मंत्र जाप में अन्तर है । शुभत्व परीक्षण आदि सभी रत्नों में कर ही लेना चाहिए । बृहस्पतिवार , रेवती नक्षत्र , पूर्णा तिथि तथा बृहस्पति की होरा में पुखराज मंत्र द्वारा अभिमंत्रित करके । गंगा जल या गुलाब जल से धोकर धारण करना चाहिए । प्रायः तीन , छह व नौ रत्ती का पुखराज पहना जाता है । जिस दिन प्रथम बार रत्न धारण करें उस दिन यदि उपवास रख सकें अथवा ब्रह्मचर्य से रह सकें या अधिक समय पूजा - पाठ में दे सके तो उत्तम है । तीनों ही कार्य हो जाएं तो अति उत्तम है । सभी रत्नों में ऐसा करना उत्तम होता है ।

कब , कौन पहने - नियमः

बृहस्पति से पीड़ित होने पर , बृहस्पति की महादशा या अन्तर्दशा होने पर , बृहस्पति पर केवल पाप ग्रहों की दृष्टि होने पर , राहु आदि पाप ग्रहों के साथ या उनसे आक्रांत होने पर  जातक का लग्न मीन या धनु होने पर , तथा  स्त्री जातकों में विवाह निश्चित होने में बाधाएं आने पर पुखराज को सामान्यतः धारण किया जाता है । पुखराज स्वर्ण में धारण करना चाहिए । 

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