जानिए महिलाएं मांग में सिन्दुर क्यों लगाती हैं ?
मांग में सिन्दूर भरना सुहाग का प्रतीक माना जाता है । जहां यह मंगलदायी है , वहीँ इससे स्त्रियों के सौन्दर्य में भी निखार आ जाता है ।
यह एक वैवाहिक संस्कार भी है । विवाह के अवसर पर वर वधू की मांग को चुटकीभर सिन्दर से भरता है । इसके बाद वधु अपने पति की दीर्घायु की कामना करते हए जीवन भर अपनी मांग में सिन्दूर भरती है ।
लेकिन पति की मृत्यु के बाद पत्नी अपनी मांग में सिन्दूर भरना बन्द कर देती है । इसका एक भाव यह भी है कि ब्रह्म ज्योतिस्वरूप है और ज्योति का वर्ण लाल है ।
देवी भागवत पुराणानुसार देवी का वर्ण भी लाल है ।
ज्योतिषीय दृष्टि से सीमंत ( भृकुटी के मध्य ) में जिन स्त्रियों के नागिन रेखा होती है , उसे दुर्भाग्य का प्रतीक माना जाता है । इस दोष की निवृत्ति के लिए भी मांग में सिंदूर भरने का परामर्श सामुद्रिक शास्त्रानुसार दिया जाता है ।
शरीर - संरचना विज्ञान के अनुसार सौभाग्यवती स्त्रियाँ मांग में जिस स्थान पर सिन्दुर भरती हैं , वह स्थान ब्रह्मरंध्र और अध्मि नामक मर्मस्थल के ठीक ऊपर है । स्त्रियों का यह मर्मस्थल अत्यन्त कोमल होता है । इसकी सुरक्षा के निमित्त स्त्रियां यहां पर सिन्दूर लगाती हैं । सिंदूर में पारा जैसी धातु अधिक मात्रा में होती है । इस कारण चेहरे पर जल्दी झुर्रियां नहीं पड़ती । सिन्दूर में पारे के प्रभाववश सिर में स्वेदज ( जू - लोक ) नहीं रहती । यह शास्त्रीय परम्परा लगभग सभी देशों में प्रचलित है ।
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