क्या आप जानते हैं सगोत्र में विवाह क्यों नहीं करना चाहिये ?

विवाह से पूर्व गोत्र पूछने की परंपरा सदियों से आज तक चली आ रही है । 




आपने कई बार आज कल की युवा पीढ़ी को यह बात कहते सुना होगा की  कुंडली , जात-पात गोत्र , धर्म बिरादरी सब कुछ मिलाया जाता है एक रिश्ता बनाने से पहले और कहते हैं की जोड़ियाँ तो उपर वाला बनाता है !  (अब यह बात सही है या गलत मेरा मुद्दा आज यह नहीं है ) परन्तु आज मैं आपको यह बताऊंगा की वास्तविकता में इन सब बातों पर विवाह से पूर्व क्यों  विशेष ध्यान दिया जाता है और क्या है इस बात के पीछे का वैज्ञानिक महत्व !  

         
इसके पीछे उद्देश्य यही है कि एक समान गोत्र में विवाह न हो । विवाह सदैव अपने से भिन्न गोत्र  में 
ही करना चाहिए । शास्त्रों में सगोत्रीय विवाह को निंदित , व  धर्मविरुद्ध माना गया है । 

असपिण्डा च या मातुरसगोत्रा च या पितुः ।
सा प्रशस्ता द्विजातीनां दारकर्मणि मैथुने ।

अर्थात् ऐसी कन्या जो माता की छः पीढ़ियों में से न हो और पिता के गोत्र से भी न मिलती हो , उससे वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करना चाहिए । 

विज्ञान की दृष्टि से सगोत्रीय लड़के - लड़की के बीच वैवाहिक संबंध स्थापित हो जाने पर उनसे उत्पन्न सन्तानों में आनुवांशिक दोषों की अधिकता होती है । ऐसे दंपत्तियों में प्राथमिक बंध्यता , संतानों में जन्मजात विकलांगता और मानसिक जड़ता जैसे अनेक विकार अधिक होते हैं । इसके अलावा ऐसी स्त्रियों में गर्भपात और गर्भकाल में अथवा जन्म के बाद शिशुओं की मृत्यु अधिक होते देखी गई है । इससे जन्मजात हृदय विकारों और जुड़वां बच्चों के जन्म में भी कमी आ जाती है । 
शोध में पाया गया है की उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जनपद के उमरी गाँव  एवम् केरल के सलाप्पुरम के कोडन्ही गाँव में सबसे अधिक जुड़वां बच्चों के पैदा होने का  गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड् दर्ज है !
जब इस विषय पर वैज्ञानिकों  ने अपनी रिसर्च प्रस्तुत की .... की  आखिर कैसे एक ही गाँव में लगातार जुड़वां बच्चे पैदा हो रहे हैं तो रिजल्ट वास्तविकता में चौंकाने वाले थे !



उन्होंने इस बात को  अपनी शोध में भी कहा की जुड़वां बच्चों का एक ही गाँव में पैदा होना कोई चमत्कार नहीं है बल्कि इसका सीधा सम्बन्ध अनुवांशिक हैं यह सब एक genetic  बिमारिओं के चलते हो रहा है !
दरसल  रिसर्च में पाया गया की वंहा के अधिकांश लोग अपने ही गोत्र में विवाह करते हैं ! और उनके गोत्र में उनके D.N.A के अनुरूप वह क्षमता उनमे हैं कि यदि एक को जुड़वां बच्चे हुए तो सब के ही एक गोत्र में विवाह करने के कारण  यह एक बिमारी की तरह ही अनुवांशिक हो गया और सब को ही लगातार जुड़वां बच्चे उत्पन्न होने लगे ! 

हैदराबाद के सरोजनी देवी आई हॉस्पिटल में किए गए एक शोध से पता चला है कि सगोत्रीय विवाह हो जाने पर उनका होने वाला बच्चा नेत्र - रोग का अधिक शिकार होता है । इस अध्ययन से पता चला है कि ऐसे दंपत्तियों के 200 बच्चों में से एक बच्चा नेत्र रोग से पीड़ित होता है । लेकिन दक्षिण भारत में ऐसा रिवाज है कि वहां निकटतम  रिश्ते - नातों में ही शादियां प्राय : होती हैं  तो वंहा भी ऐसा होना संभव है !

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