पारद शिवलिंग के पूजन - दर्शन का महत्व क्यों ?



पारद अर्थात् पारा शिव के वीर्य ( शुक्र ) से उत्पन्न माना गया है । इसीलिए शास्त्रों में इसे साक्षात् शिव - स्वरूप माना गया है और इसकी महिमा गाई गई है ।

 वाग्भट्ट के विचारानुसार जो कोई पारद शिवलिंग का श्रद्धा - भक्तिपूर्वक पूजन करता है , उसे तीनों लोकों के शिवलिंगों के पूजन का फल मिलता है । इसके दर्शनमात्र से सैकड़ों अश्वमेध यज्ञ , करोड़ों गोदान एवं हजारों स्वर्ण मुद्राओं के दान का फल मिलता है । जिस घर में नित्य विधिवत् पारद शिवलिंग का पूजन होता है , वहां सुख - समृद्धि रहती है । ऋद्धि - सिद्धि वहां वास करती हैं और साक्षात् शिव वहां विराजते हैं । 



शिव महापुराण में भगवान शिव कहते हैं -

लिंगकोटि सहस्रस्य यत्फलं सम्यर्चनात् । 
तत्फलं कोटिगुणितं रसलिंगार्चनाद् भवेत् ।। 
ब्रह्महत्या सहस्राणि गौहत्यायाः शतानि च । 
तत्क्षणद्विलयं यान्ति रसलिंगस्य दर्शनात् । 
स्पर्शनात्प्राप्यत मुक्तिरिति सत्यं शिवोदितम् ।। 

अर्थात् करोड़ों शिवलिंगों के पूजन से जिस फल की उपलब्धि होती है , उससे भी करोड़ गुना फल की प्राप्ति पारद शिवलिंग के पूजन और दर्शन से होती है । इसके दर्शन - पूजन से ब्रह्महत्या , गौहत्या दोष की निवृत्ति होती है तथा स्पर्श मात्र से मुक्ति सहज ही मिल जाती है । 

ऐसी मान्यता है की असली पारद का शिवलिंग पानी में डुबाये जाने से या धुप में अधिक देर तक रखने पर गोल्डन कलर का हो जाता है 

 

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