क्या आप जानते हैं पूजा दीप या अखंड दीप जलाने के यह नियम ?


दुर्गा भवानी ज्योतिष केंद्र 

 नमस्कार मित्रों ,
                        मैं जितेन्द्र सकलानी एक बार पुन: प्रस्तुत हुआ हूँ आप लोगो के समक्ष अपने नए ब्लॉग के साथ अपने धर्मग्रंथो पर आधारित कुछ बताये गए  वाक्य, अथवा नियमो के विषय में कुछ जानकरी लेकर....

यूँ तो सनातन धर्मानुसार हर व्यक्ति अपने नियमानुसार पूजन पाठ करते वक़्त दीप धुप आदि तो प्रज्वलित करता ही है परन्तु क्या आप जानते हैं पूजन में दीप जलाने का  क्या महत्व है या किस नियमानुसार किस दिशा में जलाना चाहिये पूजा का दीप आपके कुछ ऐसे ही सवालों के जवाब लेकर में आज उपस्थित हुआ हूँ तो कृपया सभी प्रश्नों के  सटीक उत्तर को जानने के लिए इस ब्लॉग को पूरा अवश्य पढ़ें 



अज्ञानरूपी अंधकार को दूर करने और ज्ञानरूपी प्रकाश को पाने के लिए पूजा पाठ और आरती आदि करते समय दीप प्रज्ज्वलित किया जाता है ।
                                                          सृष्टि में सूर्यदेव को जीवन - ऊर्जा का स्रोत माना गया है और पृथ्वी पर अग्नि को सूर्यदेव का परिवर्तित रूप कहा गया है । इसी कारण जीवन प्रदान करने वाली उस ( जीवन - ऊर्जा ) सूर्याग्नी  को केन्द्रीभूत करने के लिए दीप में प्रज्ज्वलित होने वाली अग्नि के रूप में सूर्यदेव का स्वरुप मानकर   देव - पूजन आदि कार्य में अनिवार्य रूप से सम्मिलित किया जाता है ।



शरीर रचना के प्रमुख तत्त्वों ( पृथ्वी , जल , वायु , अग्नि और आकाश ) में अग्नि का भी प्रमुख स्थान है । ऐसा माना जाता है कि अग्निदेव की साक्षी में किए गए कार्य सफल होते हैं और प्रज्ज्वलित दीप में अग्निदेव का वास होता है । इस प्रकार पूजा - अर्चना करते समय और अपनी भक्ति को सफल करने के लिए दीप प्रज्ज्वलित किए जाते हैं । ताकि वह हमारे द्वारा किये गए उस कर्म के साक्षी बन सकें

ऋग्वेद ( 7 / 4 / 4 )  में प्रकाश की प्रार्थना निम्नवत् की गई है -

अयं कविरकविष प्रचेता मर्त्येष्वाग्निरमृतो निधायि । 
स मा नो अन्न जुहुरः सहस्व : सदा त्वे सुमनसः स्याम ।। 

            अर्थात् हे प्रकाशरूप परमात्मा ! तुम अकवियों में कवि और मृत्यों में अमर बनकर वास करते हो । तुमसे हमारा जीवन दुखमय न हो और हम सदा सुखी रहें ।     



       शास्त्रों में कहा गया है कि दीप सम संख्या में जलाने से ऊर्जा निष्क्रिय हो जाती है । अत : विषम संख्या में ही दीप प्रज्ज्वलित करने चाहिए । इसी कारण धार्मिक कार्यो  या अनुष्ठान आदि में विषम संख्या में ही दीप प्रज्ज्वलित किए जाते हैं ।
 
           
              संकल्प और अनुष्ठान के आधार पर भी दीप प्रज्ज्वलित किए जाते हैं , जैसे नवरात्र में पूरे नौ दिन और अखण्ड रामायण पाठ में चौबीस घंटे दीप जलाए जाते हैं । किसी कार्य विशेष को पूरा करने अथवा उसके पूरा होने का संकल्प लेकर भी कोई व्यक्ति अखण्ड ज्योति जलाने की प्रतिज्ञा करता है । जब तक उसका कार्य पूर्ण नहीं हो जाता , तब तक अखण्ड ज्योति जलती रहती है । ऐसी संकल्पित ज्योति , जब तक संकल्प पूरा न हो , बुझाना अनिष्टकारी माना जाता है । अत : या तो ऐसा दृढ़ संकल्प न लें और यदि लें तो उसे पूरा अवश्य करें । 


             
                   दीपक की ऊर्ध्वाकार (खड़ी ज्योति)  जलती लौ के बारे में मान्यता है कि लौ पूर्व दिशा की ओर रखने पर आयु वृद्धि , पश्चिम की ओर रखने पर क्लेश , उत्तर की ओर रखने पर स्वास्थ्य एवं प्रसन्नता और दक्षिण की ओर लौ रखने पर हानि होती है ।




 आशा करता हूं आपको मेरा यह ब्लॉग पसंद आया होगा यदि इसमें किसी भी प्रकार से कोई त्रुटि पाई जाती है तो दुर्गा भवानी ज्योतिष केंद्र की ओर से मैं जितेंद्र सकलानी आपसे क्षमा याचना करता हूं एवं यदि आप इस विषय में कुछ और अधिक जानते हैं और हमारे साथ यदि उस जानकारी साझा करना चाहें तो आप e-mail के माध्यम से या कमेंट बॉक्स में कमेंट के माध्यम से हमे बता सकते हैं हम आपकी उस जानकारी  को अवश्य ही अपने इस जानकारी में आपके नाम सहित जोड़ेंगे

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