मांगलिक विचार




“ मंगलीक योग एवं मांगलिक परिहार "

विवाह योग्य लड़के लड़की की जन्म कुण्डली में वर्ण , वश्य , तारा , ग्रहमैत्री , नाड़ी आदि अष्टकूट सम्बन्धी गुण मिलान के पश्चात् कुण्डली में मंगल एवं मंगलीक दोष पर विशेष रूप से विचार किया जाता है । मंगलीक दोष का आधार सामान्यत: निम्न श्लोक माना जाता है । . . .

लग्ने व्यये च पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजे ।
कन्या भर्तुविनाशाय भर्ता कन्या विनाशकः ।।
- मु . संग्रहदर्पण

 अर्थात् जिस कन्या की कुण्डली में १ , , , ८ या १२वें स्थान में मंगल हो , तो वह कन्या वर ( पति ) के लिए हानिकारक तथा इसी भान्ति जिस लड़के की कुण्डली में इन्हीं स्थानों में मंगल हो वह कन्या को हानिकारक होता है । इसी भांति लग्न , चन्द्र और कभी - कभी शुक्र की राशि से भी मंगल की सप्तम उपर्युक्त स्थितियों का विचार किया जाता है ।

कुज दोष वती देया कुजदोषवते किल ।
 नास्ति दोषो न चानिष्टं दम्पत्योः सुखवर्धनम् ॥

 अपवाद - ( १ ) मंगल दोष वाली कन्या का विवाह मंगलीक दोष वाले वर के साथ करने से मंगल का अनिष्ट दोष नहीं होता तथा वर - वधू के मध्य दाम्पत्य सुख बढ़ता है
मंगलीक सम्बन्धी उपरोक्त श्लोक के परिहार स्वरूप मुहूर्त ग्रन्थों में अनेकत्र परिहार वाक्य मिलते हैं ।

शनि भौमोऽथवा कश्चित् पापो वा तादृशो भवेत् ।
      तेष्वेव  भवनेष्वेव  भौमदोष  विनाश  कृत् ॥ - फलित संग्रह अन्येऽपि-


यथा-- ( २ ) यदि लड़की की कुण्डली में जिस स्थान पर मंगल स्थित ( मंगलीक कारक ) हो , और लड़के की कुण्डली में उसी स्थान पर शनि , मंगल , सूर्य , राहु आदि कोई पाप ग्रह स्थित हों , तो मांगलिक दोष भंग हो जाता है । इसी प्रकार लड़के की कुण्डली में मांगलिक दोष होने पर कन्या की कुण्डली में उसी भाव में कोई पाप ग्रह होने से भी मांगलिक दोष नहीं रहता –

भौमेन सदृशो भौमः पापो व तादृशो भवेत् । विवाहः शुभदः प्रोक्तश्चिरायुः पुत्रपौत्रदः ॥

अर्थात् एक की कुण्डली में मंगल दोष हो , तो दूसरे की कुण्डली में भी उन्हीं स्थानों में शनि आदि पाप ग्रह होने से मंगलीक दोष भंग होकर विवाह में शुभ होता है ।

यामित्रे च सदा सौरि लग्ने वा हिषुके तथा । अष्टमे द्वादशो चैव भौमदोषो न विद्यते ॥

यह श्लोक भी लगभग यही आशय का है ।

यथोक्तम्-
अजे लग्ने व्यये चापे पाताले बृश्चिके कुजे ।
 द्यूने मृगे कर्किचाष्टौ भौमदोषो न विद्यते ॥
- मु . पारिजात


 ( ३ ) मेष राशि का मंगल लग्न में , बृश्चिक राशि का चौथे भाव में , मकर का सातवें , कर्क राशि का आठवें , एवं धनु राशि का मंगल १२वें हो , तो मंगल दोष नहीं होता ।

" द्यूने मीने घटे चाष्टौ भौम दोषो न विद्यते "
- मु . चिंतामणि


प्रकारान्तर से , मीन का मंगल ७वें भाव तथा कुम्भ राशि का मंगल अष्टम में हो , तो भौम दोष नहीं होता ।


न मंगली चन्द्र भृगु द्वितीये , न मंगली पश्यति यस्य जीवा ।
न मंगली केन्द्रगते च राहु: ,  न मंगली मंगल-राहु योगे ॥
 - मुहूर्त दीपक

( ४ ) यदि द्वितीय भाव में चन्द्र - शुक्र का योग हा , या मंगल गुरु द्वारा दृष्ट हो , केन्द्र भावस्थ राहु हो , अथवा केन्द्र में राहु - मंगल का योग हो , तो मंगल दोष नहीं रहता
सबले गुरौ भृगौ वा लग्ने द्यूनेऽथवाभौमे ।
वक्रे नीचारि गृहस्थे वास्तेऽपि न कुज दोषः ॥
- मुहूर्त दीपक

 ( ५ ) बलान्वित गुरु वा शुक्र लग्न में हो , तो वक्री , नीचस्थ , अस्तंगत अथवा शवक्षेत्री मंगल उपरोक्त दुष्ट स्थानों में होने पर भी भौम दोष नहीं होता-
 ( ६ ) इसी भांति केन्द्र व त्रिकोण में यदि शुभ ग्रह हों , तथा ३ , , ११वें भावों में पाप - ग्रह हाँ तथा सप्तमेश ग्रह सप्तम में ही हो , तो मंगल दोष नहीं होता

" केन्द्र कोणे शुभादये च त्रिषडायेऽप्यसदग्रहाः ।
तदा भौमस्य दोषो न मदने मदपस्तथा ॥ "
 - मु . चिंतामणि

 अपरं च-
तनु धन सुख मदनायुर्लाभ व्ययग : कुजस्तू दाम्पत्यम् ।
विघट्यति तद् गृहेशो न विघटयति तुंगमित्रगेहेवा ॥
- मु . चिंतामणि

( ७ ) यद्यपि १ , , , , , ११ और १२वें भावों में स्थित मंगल वर - वधू के वैवाहिक जीवन है , में विघटन उत्पन्न करता है , परन्तु यदि मंगल अपने घर ( १ , ८ ) का हो , उच्चस्थ ( मकर ) का किंवा मित्र क्षेत्री मंगल दोष कारक नहीं होता

राशिमैत्रं यदा याति गणैक्यं वा यदा भवेत् ।
अथवा गुण बाहुल्ये भौम दोषो न विद्यते ॥
 - मुहूर्त दीपक

( ८ ) यदि वर - कन्या की कुण्डलियों में परस्पर राशिमैत्री हो , गणैक्य हो , २७ गुण या अधिक मिलान होता हो , तो भी भौम दोष अविचारणीय है ।


विवेचन - उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि मुहूर्त संग्रह दर्पण में दिए गए मंगलीक सम्बन्धी आदि उपरोक्त श्लोक ( " लग्ने व्यये पाताले - " ) के परिहारस्वरूप कुछ अर्वाचीन ग्रन्थों में उपलब्ध होते हैं . [ जिनमें परस्पर विरोध वाक्यता भी मिलती है । उल्लेखनीय है कि प्राचीन सैद्धान्तिक एवं प्रतिष्ठित मुहूर्त ग्रंथों जैसे - विवाह वृन्दावन , मुहूर्त मार्तण्ड , सारावली , मु . चिन्तामणि ( प्राचीन संस्करण ) , ज्योति : निबन्ध आदि ) में मंगलीक सम्बन्धी उपर्युक्त श्लोक एवं तत्सम्बन्ध विभिन्न परिहार वाक्यों का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता ।

यथा-
लग्ने क्रूरा व्यये क्रूरा धने क्रूरा कुजस्तथा ।
सप्तमे भवने क्रूरा: परिवार क्षयंकराः ॥
- मु. संग्रह दर्पण


 वर - कन्या की कुण्डली में मंगलीक दोष एवं उसके परिहार का निर्णय अत्यन्त सावधानीपूर्वक करना चाहिए । केवल १ , , , ८ आदि भावों में मंगल को देखकर दाम्पत्य जीवन के सुख - दुःख का निर्णय कर देना उपयुक्त नहीं । मंगलीक वाले स्थानों ( भावों ) में मंगल के अतिरिक्त कोई अन्य क्रूर ग्रह भी १ , , ७ एवं १२वें स्थानों में हो , तो वह भी परिवारिक एवं वैवाहिक जीवन के लिए । अनिष्टकारी होता है । 





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