जानिए छोछक व भात क्यों दिया जाता है ?

जय भवानी
विधिवत् ब्याहता पुत्री के पुत्र होने पर उस बच्चे के लिए ननिहाल पक्ष की ओर से वस्त्र , आभूषण आदि भेंट किए जाते हैं ।
               इस अवसर पर लड़की , दामाद तथा ससुराल के अन्य मान्य लोगों के लिए भी वस्त्र और भेंट के रूप में धन आदि दिया जाता है । समाज में इस परंपरा को छोछक कहते हैं । 

यह परंपरा बच्चे के नामकरण वाले दिन पूरी की जाती है । अधिकांश घरों में संतान चाहे पुत्र हो या पुत्री माता के मायके वाले छोछक अवश्य देते हैं । पुत्री के बेटे या बेटी के विवाह के समय भी ननिहाल पक्ष की ओर से ऐसी ही रस्म निबाही जाती है । इसे भात देना कहते हैं ।



 भात में कन्या के मामा - नाना कन्या के लिए तो वस्त्र , आभूषण तथा नकदी देते हैं , ससुराल पक्ष के अन्य लोगों के लिए । भी वस्त्र एवं भेंट आदि देते हैं ।
                                   भात के अतिरिक्त मामा आदि भांजी या भांजे की शादी में अनेक महत्वपूर्ण रस्में निभाते हैं । जैसे भांजी को कुंडल पहनाना एवं बारात आने से पहले की रात्रि में प्रातः चार बजे कन्या को स्नान कराना आदि । जहां तक छोछक एवं भात की परंपरा का प्रश्न है तो शास्त्रों के अनुसार इसके मूल में पिता की संपत्ति में से पुत्री को हिस्सा देने की भावना ही इसका मुख्य कारण माना जाता है । 

         पुरुष प्रधान भारतीय समाज में दीर्घकाल तक पिता की संपत्ति पर पुत्र का अधिकार माना जाता रहा है । कन्या का विवाह कम उम्र में कर दिए जाने के कारण उसके जीवनयापन का भार पति पर होता है । अत : कन्या को पिता की संपत्ति से सीधे - सीध हिस्सा न देकर उसके विवाह में धन लगाने का पिता और भाइयों का कर्तव्य निर्धारित किया गया है ।

 मनु की व्यवस्थानुसार -
यथैवात्मा तथा पुत्रः पुत्रेण दुहिता समा ।
 ( मनुस्मृति 9 / 130 ) 

अर्थात् जैसे आत्मा और पुत्र समान हैं , वैसे ही पुत्र और पुत्री समान हैं । अतः मनु ने दूसरी व्यवस्था दी है कि पिता की संपत्ति के विभाजन का पुत्रों की ही तरह पुत्री को भी हिस्सा मिलना चाहिए

स्वे स्वेभ्योऽशेभ्यस्तु कन्याभ्यः प्रदद्युभातर: पृथक् ।
स्वात्स्वादंशाच्चतुर्भागं       पतिताः     स्युरदित्सवः ।

अर्थात् कन्या ( अविवाहित बहनों ) को सभी भाई अपने भागों में से अलग - अलग भाग दें । जो भाई बहन के विवाह के लिए अपने धन का चौथा भाग नहीं देते , वे पतित होते हैं ।
             मनु ने बहन की कुमारी कन्याओं के लिए भी भाइयों द्वारा स्नेह भाव से धन भाग देने की बात कही है-

यास्तासां स्युर्दुहितरस्तासामपि यथार्हतः । 
मातामह्या धनात्किंचित्प्रदेयं प्रीतिपूर्वकम् ॥ 

अर्थात् बहन की कुमारी कन्याओं को भी नानी के धन में से अपनी प्रसन्नता से उनके संतोष के लिए कुछ धन देना चाहिए ।

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टिप्पणियाँ

  1. आप द्वारा दी गई जानकारी तर्क संगत है। लेकिन यह स्वेच्छा से होनी चाहिए। छोछक या भात मांगने की परम्परा गलत है।

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