जानिए क्या है पूजा करने का महत्व ?



पूजा शब्द की उत्पत्ति पूज् के साथ ल्युट प्रत्यय लगने से हुई है । जिसका अर्थ है - आराधना करना , अर्चना करना , सादर स्वागत करना , सम्मान करना , श्रद्धापूर्वक भेंट चढ़ाना । सगुणोपासना में पूजा का बड़ा महत्व है । पूजन का प्रचलन वैदिक काल से ही रहा है जिसमें इन्द्र , वरुण , अग्नि , सूर्य , रुद्र आदि देवताओं की पूजा होती है और इनसे अद्भुत परिणाम प्राप्त होते हैं । प्राचीन परम्परा के अनुसार हमें देवार्चन की दो विधियां प्राप्त होती हैं - 1 . योग , 2 . पूजा ।



योग का दूसरा नाम यज्ञ है । अग्निहोत्र द्वारा अर्चना करने का दूसरा नाम याग या यज्ञ है । याग ( यज्ञ ) अनेक लोगों की सहायता से सम्पन्न होता है । इसको सम्पन्न करने के लिए एक क्रमबद्ध मन्त्र - संग्रह होता है जिसकी सहायता से विधिपर्वक याग सम्पन्न किए जाते हैं ।

शास्त्र विधिसम्मत पदार्थों को लेकर देवताओं की पूजा - अर्चना करना ही दूसरी विधि | है । पूजा पूजन सामग्री ( पत्र - पुष्प - जल - नैवेद्य , अगर , धूप - कपूर आदि ) की सहायता से सम्पन्न होती है । इन सामग्रियों को अपने आराध्यदेव को अर्पित कर पूजा करने वाला उन्हें प्रसन्न करने का उपाय करता है जिससे उसका एवं समाज का कल्याण हो सके ।



पूजा पंचोपचार से लेकर सर्वांग उपचार तक कई विधियों से सम्पन्न की जाती है । जैसे - 1 . वैदिक विधि से 2 . पौराणिक विधि से । वैदिक एवं पौराणिक विधि से पूजा करने में मन्त्र भिन्न होते हैं ।





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