क्या आप जानते हैं पत्नी का स्थान वाम अंग में ही क्यों होता है ?


पौराणिक आख्यानों के अनुसार ब्रह्माजी के दाएं स्कंध से पुरुष की ओर बाएं स्कंध से स्त्री की उत्पत्ति हुई है । यही कारण है कि स्त्री को वामांगी भी कहा जाता है और विवाहोपरान्त उसे पति के बाएं भाग की ओर बैठाए जाने की परम्परा है । यद्यपि सप्तपदी होने पर वधू को दाई ओर बैठाए जाने का विधान है , क्योंकि तब तक वह पत्नी के रूप में पूरी तरह स्थापित नहीं हो चुकी होती । प्रतिज्ञाओं से बद्ध हो जाने के बाद जब स्त्री पत्नी के रूप में पूरी तरह स्थापित हो चुकी होती है तो उसका स्थान पति के दाई ओर से बाईं ओर कर दिया जाता है ।

तैत्तरीय ब्राह्मण ( 33 / 3 / 51 ) में कहा गया है कि

अथो अर्धो वा एक अन्यतः यत् पत्नी । 

अर्थात् पुरुष का शरीर तब तक पूर्ण नहीं होता जब तक कि स्त्री उसके अर्धांग ( वामांग ) में नहीं आ जाती । यहां पर एक विशेष बात और विचारणीय है कि जब पुरुष प्रधान धार्मिक कार्य जैसे यज्ञ , नामकरण , जातकरण , अन्नप्राशन और निष्क्रमण संस्कार , विवाह और कन्यादान आदि सम्पन्न किए जाते हैं तो उस समय पत्नी को दक्षिण ( दाई ) भाग की ओर ही बैठाया जाता है । इसके विपरीत स्त्री प्रधान धार्मिक संस्कारों में पति के वाम अंग की ओर बैठती है ।

देवी भागवत पुराण में इसी तथ्य को इस प्रकार प्रकट किया गया है-

 स्वेच्छामयः स्वेच्छयायं द्विधारूपो बभूव ह । 
 स्त्री रूपो वामभागांशो दक्षिणांशः पुमान् स्मृतः ।। 

अर्थात् स्वेच्छामय परमात्मा स्वेच्छा से दो रूपों में विभक्त हो गए । परमात्मा के वाम भाग (बाएं) से स्त्री और दक्षिण (दाएं) भाग से पुरुष बने ।

संस्कार गणपति में पत्नी को सदा ही वाम भाग की ओर बैठाने का निर्देश देते हुए कहा गया है -

वामे सिंदूरदाने च वामे चैव द्विरागमने । 
वामे शयनैकश्यायां भवेज्जाया प्रियार्थिनी ।।

 अर्थात् सिन्दूर दान , द्विरागमन , भोजन , शयन और सेवा के समय पत्नी को सदैव पति के वाम भाग की ओर रहना चाहिए। इसके अतिरिक्त अभिषेक के अवसर पर , आशीर्वाद के समय और ब्राह्मण के पाद - प्रक्षालन के समय भी पत्नी को वाम भाग की ओर ही रहना चाहिए ।


टिप्पणियाँ

  1. ,🙏🙏 महत्वपूर्ण लेख
    बहुसम्यक:

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद महानुभाव दुर्गा भवानी ज्योतिष केंद्र आपका हार्दिक अभिनंदन करता है आपके प्रोत्साहन से ही हमें अभिलेख लिखने की शक्ति प्राप्त होती है आशा करते हैं आप हमारे अभिलेखों को आगे भी शेयर करेंगे

      हटाएं

एक टिप्पणी भेजें

आपके प्रोसहन हेतु धन्यवाद हम आपकी सेवा में हमेशा तत्पर हैं एवं हमारा पर्यास है की ऐसी ही महत्वपूर्ण एवं शास्त्रों में लिखित सटीक जानकारी हम आप तक पहुंचाएं एवं आप भी हमारे नियमित पाठक बने रहें !

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

महाकालभैरवाष्टकम् अथवा तीक्ष्णदंष्ट्रकालभैरवाष्टकम् ॥

जानिए शिवार्चन से पूर्व कैसे देखें शिव वास

जानिए पूजा पाठ से पूर्व स्नान करना अनिवार्य क्यों ?