जीवन में गुरु का महत्व क्यों है ?
नमस्कार मित्रों ,
मैं जितेन्द्र सकलानी एक बार पुन: प्रस्तुत हुआ हूँ आप लोगो के समक्ष अपने नए ब्लॉग के साथ अपने धर्मग्रंथो पर आधारित कुछ बताये गए वाक्य, अथवा नियमो के विषय में कुछ जानकरी लेकर....
मैं जितेन्द्र सकलानी एक बार पुन: प्रस्तुत हुआ हूँ आप लोगो के समक्ष अपने नए ब्लॉग के साथ अपने धर्मग्रंथो पर आधारित कुछ बताये गए वाक्य, अथवा नियमो के विषय में कुछ जानकरी लेकर....
शास्त्रों में गुरु की महिमा का वर्णन जरूर पढ़ने को मिलता है कभी ना कभी अपने बड़े बुजुर्गों द्वारा आपने भी गुरु की महिमा का वर्णन तो अवश्य ही सुना होगा पुराने जमाने के लोग कहा करते थे कि जीवन में गुरु बनाना अति आवश्यक होता है परंतु क्या आपने कभी सोचा है कि जीवन में गुरु का महत्व क्यों आवश्यक है ? आइए जानते हैं आपके इन्हीं प्रश्नों का उत्तर इस ब्लॉग के माध्यम से
श्रीमद्भगवद् गीता ( 17/14 ) में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण गुरु का महत्त्व बताते हुए कहते हैं -
देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शोचमार्जवम् ।
ब्रह्मचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते ।।
अर्थात् देव , ब्राह्मण , गुरु और विद्वजनों का पूजन , पवित्रता , सरलता , ब्रह्मचर्य और अहिंसा आदि शारीरिक तप कहलाते हैं । जो मनुष्य को ज्ञान कराए और ब्रह्म की और ले जाए वह गुरु कहलाता है । जो ब्रह्म की प्राप्ति का साधन बतलाए और साथ ही उसका प्रमाण भी दे , वही सच्चा गुरु है । गुरु गीता में तो गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान कहा गया हैैं । यथा-
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुर्साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः ।।
अर्थात् गुरु ही ब्रह्मा है , गुरु ही विष्णु है और गुरु ही महेश ( शिव ) है । यहां तक कि गुरु ही साक्षात् परब्रह्म है । ऐसे गुरु को मैं नमस्कार करता हूं ।
महाकवि तुलसीदास ने रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड ( 92/3 ) में गुरु की महिमा के बारे में लिखा है-
गुरु बिनु भवनिधि तरड़ न कोई ।
जो बिरंचि संकर सम होई ॥
अर्थात गुरु के मार्ग निर्देशन के बिना कोई भी मनुष्य इस भवसागर को पार नहीं कर सकता , भले ही वह ब्रह्मा या शिव ही क्यों न हों । आशय है कि प्रत्येक को मार्ग निर्देशन के लिए गुरु की आवश्यकता होती है ।
महर्षि वाल्मीकि ने भी रामायण के अयोध्याकाण्ड ( 30/36 ) में गुरु के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए लिखा है-
स्वर्गो धनं वा धान्यं वा विद्या पुत्राः सुखानि च ।
गुरु वृत्युनुरोधेन न किंचितदपि दुर्लभम् ।।
अर्थात् हे देवी ! कोई मनुष्य बहुत बड़ा तपस्वी , विद्वान , कुलीन ही क्यों न हो , किन्तु यदि वह गुरु - भक्ति से विहीन हो तो उसका तपस्वी , विद्वान , कुलीन होना व्यर्थ है । उसकी विद्या , कुलीनता और तपश्चर्या लोकरंजन तो कर सकती है किन्तु उसका कोई भी फल उसे नहीं प्राप्त होता ।
यदि चांडाल ने भी गुरु - भक्तिरूपी अग्नि से अपने पापरूपी काष्ठों को स्वाहा कर दिया है तो वह संसार में आदरणीय है । इसके विपरीत जो विद्वान होते हुए भी गुरु भक्ति से हीन है , वह आदर के योग्य नहीं होता ।
महाभारत के वनपर्व ( 326/29 ) में भी गुरु महिमा का वर्णन करते हुए लिखा गया है-
न विना गुरु सम्बन्ध ज्ञानस्याधिगमः स्मृतः ।
अर्थात् गुरु - भक्ति किए बिना ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती । आपस्तम्ब गृह्यसूत्र गुरु को ही मनुष्य का वास्तविक जन्मदाता कहा गया है ।
स हि विद्यात : तं जनयति तदस्य श्रेष्ठं जन्म ।
माता पितरौ तु शरीरमेव जनयतः ।।
अर्थात् माता - पिता जन्म अवश्य देते हैं , परन्तु किसी भी व्यक्ति का वास्तविक जन्मदाता गुरु ही होता है । गुरु ज्ञान के बाद ही मनुष्य का वास्तविक जन्म होता है वही जन्म श्रेष्ठ होता है ।
पद्मपुराण के भूमिखण्ड ( 85/12/14 ) में कहा गया है कि- सूर्य से दिन में , चन्द्रमा से रात्रि में , दीपक से घर में उजाला होता है । लेकिन गुरु तो शिष्य के हृदय ( अंत : स्तल ) में दिन - रात ही उजाला किए रहता है । वह शिष्य का अज्ञानान्धकार नष्ट कर देता है । अतः हे राजन् ! शिष्य के लिए गुरु परम तीर्थ होता है । यथा-
दिवा प्रकाशकः सूर्यः राशी रात्रौ प्रकाशकः ।
गृहे प्रकाशको दीपस्तमोनाश कर: सदा ॥
रात्रौ दिवा गृहस्यन्ते गुरुः शिष्यं सदैव हि ।
अज्ञानाख्यं तमस्तस्य गुरुः सर्वै प्रणाशयेत् ॥
तस्माद् गुरुः परं तीर्थे शिष्यमाणामवनीपते ।
इनके अलावा भी भारतीय धर्म , साहित्य और संस्कृति में अनेक ऐसे दृष्टांत भरे पड़े हैं , जिनसे गुरु का महत्त्व प्रकट होता है । यहां तक वशिष्ठ को गुरु रूप में पाकर श्रीराम ने , अष्टावक्र को पाकर जनक ने और सांदीपनि को पाकर श्रीकृष्ण - बलराम ने अपने आपको बड़ी भागी माना । गुरु की महत्ता बनाए रखने के लिए ही भारत में गुरु पूर्णिमा को गुरु पूजन या व्यास पूजन किया जाता है ।
आशा करता हूं आपको मेरा यह ब्लॉग पसंद आया होगा यदि इसमें किसी भी प्रकार से कोई त्रुटि पाई जाती है तो दुर्गा भवानी ज्योतिष केंद्र की ओर से मैं जितेंद्र सकलानी आपसे क्षमा याचना करता हूं एवं यदि आप इस विषय में कुछ और अधिक जानते हैं और हमारे साथ यदि उस जानकारी साझा करना चाहें तो आप e-mail के माध्यम से या कमेंट बॉक्स में कमेंट के माध्यम से हमे बता सकते हैं हम आपकी उस जानकारी को अवश्य ही अपने इस जानकारी में आपके नाम सहित जोड़ेंगे
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जय हो गुरुदेव
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