भजन - कीर्तन और प्रार्थना क्यों की जाती है ?
नमस्कार मित्रों ,
मैं जितेन्द्र सकलानी एक बार पुन: प्रस्तुत हुआ हूँ आप लोगो के समक्ष अपने नए ब्लॉग के साथ अपने धर्मग्रंथो पर आधारित कुछ बताये गए वाक्य, अथवा नियमो के विषय में कुछ जानकरी लेकर.... आपने ईश्वर की प्राप्ति हेतु, ईश्वर की कृपा प्राप्ति हेतु , ईश्वर अनुकंपा के लिए या अन्य अपने स्वार्थ के लिए लोगों को पूजा पाठ, भजन, कीर्तन, प्रार्थना आदी को करते हुये तो अवश्य ही देखा होगा परन्तु क्या आपने कभी सोचा है की पूजा पाठ भजन कीर्तन आदी करने का क्या लाभ है?
मैं जितेन्द्र सकलानी एक बार पुन: प्रस्तुत हुआ हूँ आप लोगो के समक्ष अपने नए ब्लॉग के साथ अपने धर्मग्रंथो पर आधारित कुछ बताये गए वाक्य, अथवा नियमो के विषय में कुछ जानकरी लेकर.... आपने ईश्वर की प्राप्ति हेतु, ईश्वर की कृपा प्राप्ति हेतु , ईश्वर अनुकंपा के लिए या अन्य अपने स्वार्थ के लिए लोगों को पूजा पाठ, भजन, कीर्तन, प्रार्थना आदी को करते हुये तो अवश्य ही देखा होगा परन्तु क्या आपने कभी सोचा है की पूजा पाठ भजन कीर्तन आदी करने का क्या लाभ है?
आपके इन्हीं प्रश्नों के उत्तर देने प्रस्तुत हुआ हुँ मैं अपने इस ब्लॉग के माध्यम से तो आइये शुरुवात करें।
हमारे शास्त्रों में बताया गया है कि-
भजनस्य लक्षणं रसनम् अर्थात् अंतरात्मा का रस जिसमें उभरे , उसका नाम है - भजन । हृदय में जो आनंद वस्तु , व्यक्ति या भोज - सामग्री के बिना भी आता है . वही भजन का रस है ।
रामचरितमानस में तुलसीदासजी ने कहा है कि जो साधक भगवान् का विश्वास पाने के लिए भजन करता है , प्रभु अपनी अहैतुकी कृपा से उसे अपना विश्वास प्रदान करके उसके जीवन को सफल कर देते हैं ।
पद्मपुराण के उत्तरखंड में कहा गया है-
नाहं वसामि वैकुंठे योगिनां हृदये न च ।
मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद ।
( पद्मपुराण / उत्तराखंड 14/23 )
अर्थात् हे नारद ! मैं न तो बैकुंठ में ही रहता हूं और न योगियों के हृदय में ही रहता हूं । मैं तो वहीं रहता हूं , जहां प्रेमाकुल होकर मेरे भक्त मेरे नाम का कीर्तन किया करते हैं ।
मैं सदैव लोगों के अंत : करण में रहता हूं । शास्त्रकारों ने कहा है -
मुक्तिः ददाति कश्चित् न भक्तियोगम् अर्थात् स्वयं भगवान भी भजन करने वालों को मुक्ति सुलभ कर देते हैं , पर भक्ति सबको नहीं देते । भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है-
अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक ।
साधुरेव स मन्तव्य सम्यग्व्यवसितो हि सः ॥
( श्रीमद्भगवद् गीता 9/30 )
अर्थात् यदि कोई दुराचारी भी अनन्य भाव से मेरा भक्त होकर मुझे भजता है , तो वह साधु ही मानने योग्य है । क्योंकि उसने भली भांति निश्चित कर लिया है कि परमेश्वर के भजन के समान अन्य कुछ भी नहीं है । ऐसा व्यक्ति थोड़े ही दिनों में धर्मात्मा होकर सुख - शांति पाता है । आगे भी वे कहते है-
अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम् ।
( श्रीमद्भगवद् गीता 9/33 )
अर्थात् हे अर्जुन ! तू इस नाशवान दुखमय और क्षणभंगुर मनुष्य शरीर को प्राप्त हुआ है । इसलिए निरंतर मेरा ही भजन कर , ताकि इससे बाहर निकल सके । इस प्रकार नित्य प्रार्थना का बड़ा महत्त्व है । मनुष्य ही नहीं देवता भी एक - दूसरे और ईश्वर की प्रार्थना करते हैं । प्रत्येक मानव के हृदय की प्रार्थना है-
असतो मा सद्गमय ,
तमसो मा ज्योतिर्गमय ,
मृत्योर्मा अमृतं गमय ।
( बृहदारण्यक उपषिद् 1/3/27 )
अर्थात् मुझे असत् से सत् की ओर ले चलो , अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो और मृत्यु से अमरत्व की ओर ले चलो ।
इसके द्वारा हम ईश्वर से अपना संबंध जोड़कर महान् विभूतियों के स्वामी बन सकते हैं और समस्त आधि - व्याधि , कष्ट , कठिनाइयों एवं रोग - शोकों से मुक्ति पा सकते हैं । ऋग्वेद में परमात्मा से प्रार्थना की गई है -
ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परा सुव ।
यद् भद्रं तन्न आ सुव ॥
( ऋग्वेद 5/82/5 )
अर्थात् हे संसार रचयिता ईश्वर ! तू हम सबके पापों को दूर कर और जो कल्याणकारी विचार हैं , उन्हें हमें प्रदान कर । हे कृपासागर ! हमारे अंत : करणों को पवित्र कर शुद्ध , बुद्ध और पवित्र बना । रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने कहा है-
मसकहि करइ बिरंचि प्रभु अजहि मसक ते हीन ।
(उत्तरकांड 122 ख )
जो चेतन कहं जड़ करई जड़हि करइ चैतन्य ।
( उत्तरकांड 119 ख )
तृन ते कुलिस कुलिस तृन करई ।
( लंकाकांड 34/8 )
अर्थात् ईश्वर असंभव को संभव और संभव को असंभव बनाने में सर्वथा समर्थ हैं । वह सब तरह से पूर्ण हैं । उनमें किंचित्मात्र भी कमी नहीं है । जब हमारा संबंध उनसे प्रार्थना के माध्यम से जुड़ जाएगा , तो उनकी सारी शक्ति हमारे में आ जाएगी । प्रार्थना से कष्ट , दुख , संताप , पश्चात्ताप , शारीरिक बीमारियां , चित्त के विकार , मन के पाप दूर हो जाते हैं । आध्यात्मिक सिद्धियां प्राप्त होती हैं , दैवी शक्तियां ईश्वर के प्रति विश्वास बढ़ता है , आत्मबल , आत्म - विश्वास व आत्मज्ञान होती है ।
आशा करता हूं आपको मेरा यह ब्लॉग पसंद आया होगा यदि इसमें किसी भी प्रकार से कोई त्रुटि पाई जाती है तो दुर्गा भवानी ज्योतिष केंद्र की ओर से मैं जितेंद्र सकलानी आपसे क्षमा याचना करता हूं एवं यदि आप इस विषय में कुछ और अधिक जानते हैं और हमारे साथ यदि उस जानकारी साझा करना चाहें तो आप e-mail के माध्यम से या कमेंट बॉक्स में कमेंट के माध्यम से हमे बता सकते हैं हम आपकी उस जानकारी को अवश्य ही अपने इस जानकारी में आपके नाम सहित जोड़ेंगे
हमारा ईमेल एड्रेस है:------ www.durgabhawani9634@gmail.com
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