क्या आप जानते हैं मुंडन संस्कार क्यों किया जाता है?

ऐसी मान्यता है कि मुण्डन संस्कार से शिशु का मस्तिष्क और बुद्धि दोनों ही पुष्ट होते हैं और गर्भवास के मलिन संस्कारों से उसे मुक्ति मिलती है । इस संस्कार में सिर के बाल पहली बार उतारे जाते हैं ।



शिशु जब एक या तीन वर्ष का हो जाए तो उसका मुण्डन संस्कार कराया जाता है । कुल परम्परा के अनुसार पांचवें या सातवें वर्ष में भी मुण्डन संस्कार कराने का विधान है ।

आश्वलायन गृह्यसूत्र ( 1 / 17 / 2 ) के अनुसार--

तेन ते आयुषे वपामि सुश्ललोकाय स्वस्तये । 

अर्थात् मुण्डन संस्कार करने से शिशु की आयु वृद्धि होती है और वह सुन्दर व कल्याणकारी कार्यों की ओर प्रवृत्त होता है ।

यजुर्वेद ( 3 / 63 ) में मुण्डन या चूडाकर्म संस्कार का उल्लेख करते हुए कहा गया है

निवर्तयाम्यायुषेऽन्नाद्याय प्रजननाय ।
रायस्पोषाय सुप्रजास्त्वाय सुवीर्याय ॥

अर्थात् हे शिशु ! मैं तेरी आयु - वृद्धि के लिए , तुझे अन्न ग्रहण करने में समर्थ बनाने के लिए , उत्पादन क्षमता प्रदान करने के लिए , ऐश्वर्य वृद्धि के लिए , सुन्दर सन्तान प्राप्ति के लिए , बल एवं पराक्रम प्राप्त करने के योग्य बनाने के लिए तेरा मुण्डन संस्कार करता हूं ।

           ऐसा माना जाता है कि एक वर्ष से पूर्व मुंडन संस्कार कराने पर शिशु के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है । मुंडन संस्कार किसी भी देवस्थल पर कराने के पीछे उद्देश्य यही रहता है कि शिशु पर सद् संस्कारों का प्रभाव पड़े । वास्तव में देखा जाए तो मुंडन संस्कार मस्तिष्क का एक प्रकार से पूजन है ।

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