क्यों किया जाता है निष्क्रमण संस्कार ? निष्क्रमण संस्कार का उद्देश्य क्या है ?
शिशु को जब पहली बार घर से बाहर ले जाया जाता है , उस समय सम्पन्न होने वाला कर्म विशेष निष्क्रमण संस्कार कहलाता है ।
इस सम्बन्ध में कहा गया है कि निष्क्रमणादायुषो वृद्धिरप्युद्दिष्टा मनीषिभिः । अर्थात् निष्क्रमण संस्कार का ध्येय शिशु को स्वास्थ्य और आयुवृद्धि कराना माना गया है ।
इस संदर्भ में अथर्ववेद के श्लोक 8 / 2 / 14 में कहा गया है--
अर्थात् हे शिशु ! तुम्हारे निष्क्रमण के समय ध्युलोक और पृथ्वी लोक सुखद शोभास्पद और कल्याणकारी हों । सूर्य तुम्हारे लिए कल्याणकारी आलोक प्रदान करे । तुम्हारे हृदय में स्वच्छ कल्याणकारी वायु का संचरण हो । दिव्य जल वाली पावन गंगा - यमुना आदि नदियां तुम्हारे लिए निर्मल एवं स्वादिष्ट जल वहन करने वाली हों ।
इस सम्बन्ध में कहा गया है कि निष्क्रमणादायुषो वृद्धिरप्युद्दिष्टा मनीषिभिः । अर्थात् निष्क्रमण संस्कार का ध्येय शिशु को स्वास्थ्य और आयुवृद्धि कराना माना गया है ।
इस संदर्भ में अथर्ववेद के श्लोक 8 / 2 / 14 में कहा गया है--
शिवे तेस्तां द्यावापृथिवी असंतापे अभिश्रियौ ।
शं ते सूर्य आतप तुशं वातो वातु ते हदे ।
शिवा अभिक्षरन्तु त्वापो दिव्याः पयस्वतीः । ।
अर्थात् हे शिशु ! तुम्हारे निष्क्रमण के समय ध्युलोक और पृथ्वी लोक सुखद शोभास्पद और कल्याणकारी हों । सूर्य तुम्हारे लिए कल्याणकारी आलोक प्रदान करे । तुम्हारे हृदय में स्वच्छ कल्याणकारी वायु का संचरण हो । दिव्य जल वाली पावन गंगा - यमुना आदि नदियां तुम्हारे लिए निर्मल एवं स्वादिष्ट जल वहन करने वाली हों ।
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