जानिए ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किस ग्रह के निमित्त नगों के अभाव में कौन सी प्रामाणिक जड़िया धारण करनी चाहिए।
औषध | जड़ियां
1 . सूर्य - बेल की जड़ या बेंत की जड़ ।
2 . चन्द्र - खिरनी की जड़ ।
3 . मंगल - अनन्त की जड़ या नाग जिह्वा ।
4 . बुध - वरधारा की जड़ ।
5 . बृहस्पति - केले की जड़ ।
6 . शुक्र - अरंडी या सरपोंखा की जड़ ।
7. शनि - बिच्छू - बूटी की जड़ ।
8 . राहु - सफेद चन्दन की जड़ ।
9 . केतु - अश्वगंध की जड़ ।
10 . नवग्रह पीड़ा में - काले धतूरे की जड़ ।
कब लाएं ?
इन समस्त जड़ों को रवि पुष्ययोग में लाना चाहिए । यदि ऐसा संभव न हो पाए तो जिस ग्रह से सम्बन्धित जड़ को ला रहे हैं उसी ग्रह से सम्बन्धित दिन में लाएं । नवग्रह शांति के लिए जड़ लानी हो तो उसका दिन मंगलवार ही होगा । राहु व केतु के लिए शनि या बुधवार ही होगा ।
निमंत्रण विधिः
जिस वनस्पति की जड़ को उखाड़ना हो उसे एक दिन पूर्व स्नानादि से पवित्र होकर शुद्ध मन से सन्ध्या के समय उस वनस्पति के पास जाकर भक्ति - भाव से उसे अपने यहां आमंत्रित करें तथा ' मम कार्यम सिद्धिः कुरु कुरु स्वाहा ' मंत्र के उच्चारण के साथ वनस्पति पर पीले चावल चढ़ाएं तथा उसकी जड़ में एक लोटा जल छोड़कर धूप या दो अगरबत्तियां वहां जला आएं । यह प्रत्येक वनस्पति की जड़ को लाने के लिए एक ही आमंत्रण या निमंत्रण विधि है । बिना निमंत्रण के लाई गयी जड़ी विशेष लाभकारी नहीं होती।
कैसे लाएं ?
निमंत्रित करने के अगले दिन शौचादि से निवृत्त व पवित्र होकर प्रातः ही अथवा शुभ मुहूर्त में भगवान शंकर का स्मरण करके एक स्वच्छ ( प्रयोग न किया गया ) वस्त्र , नोंकदार लकड़ी या चांदी का चाकू ( या पतरा ) लेकर निमंत्रित की गई बनस्पति के पास जाएं । वहां उस वनस्पति से पुनः प्रार्थना करें कि आप अत्यंत श्रद्धा व विश्वासपूर्वक उसकी जड़ को ले जा रहे हैं वह आपके लिए कल्याणकारी होगा तथा उस वनस्पति से सम्बन्धित पिशाच , राक्षस , बेताल , सर्प आदि गण भगवान पशुपति की आज्ञा से वहां से चले जाएं - इस प्रकार प्रार्थना करने के बाद हाथ से या नुकीली लकड़ी से जड़ के आस - पास की मिट्टी हटाकर जड़ को सुरक्षित निकाल लें । जड़ का मुख्य भाग आपके प्रहार से खंडित न हो , यह ध्यान रखें । ( लोहे के चाकू , कैंची , खुरपे आदि का प्रयोग वर्जित है । ) जड़ बाहर आ जाए तो चांदी के पत्तर या चाकू से अथवा हाथ से जड़ को वनस्पति से पृथक करें और अपने साथ लाल वस्त्र लपेटकर , बिना पीछे मुड़कर देखे और बिना मार्ग में कहीं रुके सीधे घर आ जाएं । वस्त्र में लपेटकर घर आते समय - ' ऊं वनदण्डे महादण्डाय स्वाहा । ' इस मंत्र का सात बार उच्चारण करें । कुछ विद्वानों की ऐसी भी धारणा है कि मूल उखाड़कर घर लाने तक यदि कोई अन्य व्यक्ति टोक दे तो उस मूल के प्रभाव में अवरोध आ जाता है अतः फिरअगले हफ्ते या अगले रवि पुष्य योग में पुनः इसी प्रक्रिया से मूल को लाना पड़ता है। वास्तव में किसी का टोकना जातक के पाप अधिक होने के कारण ही होता है , क्योंकि जड़ी प्राप्त होने पर रत्न की भांति 30 से 40 प्रतिशत लाभ देती है अतः जातक के बढ़े हुए पाप उस जड़ी को शीघ्र या सरलता से उसके पास आने नहीं देते। कोई तो टोक देता है तो वह जड़ खंडित हो जाती है या हाथ से छूटकर गिर जाती।इन सभी स्थितियों में पुनः उस वनस्पति के दूसरे झाड़ को नियंत्रित करके उसकी जड़ को लाना पड़ता है घर लाकर जड़ को भली प्रकार जल से धोकर फिर गंगा जल से धो लेना चाहिए ।
धारण - विधिः
गंगाजल से साफ कर , जड़ का पूजन कर , उस पर अक्षत , कुकुम आदि से तिलक करके तथा ग्रहमंत्र की कम - से - कम एक माला से अभिमंत्रित करके ग्रह संबंधी रंग के वस्त्र में लपेटकर , ग्रह सम्बन्धी रंग के धागे से बांधकर भुजा आदि में धारण करना चाहिए । यदि मूल बहुत अधिक बड़ी हो तो उसका एक भाग ही काटकर धारण करें । धारण न करने चाह वाले जेब में रखें , और ऐसा भी न करने वाले व्यक्ति उस जड़ को अपने मंदिर में ईश्वर की प्रतिमा के सम्मुख प्रतिष्ठित करें तथा नित्य विधिवत् नियम से उसकी पूजा करें ; ( पूजा में रखना हो तो कटी हुई या खंडित जड़ नहीं रखनी चाहिए । ) अथवा ग्रह से सम्बन्धित दिनों में उस ग्रह से सम्बन्धित वनस्पति की बिना जड़ उखाड़कर लाए वहीं जाकर विधिवत् पूजा की जा सकती है , किन्तु , उसे धारण करना अधिक प्रभावी होता है ।
सौभाग्य वृद्धिः
कार्यों के निर्विघ्न सम्पादन के लिए तथा मंगल व शुभत्व के लिए आक की जड़ को भी उपयुक्त विधि से आमंत्रित करके रविवार या रविपुष्य योग में घर लाकर पूजा के लिए रखा जा सकता है । आक की जड़ में गणेश का वास होता है । आक की जड़ सदैव गणेश के मस्तिष्क व सूंड से मिलती - जुलती हुई होती है । कहा जाता है कि आक का फाड़ यदि 25 वर्ष पुराना हो जाए तो उसकी जड़ बिलकुल चतुर्भज गणेश की प्रतिमा के समान हो जाती है । ऐसी जड़ अत्यंत शुभ व कल्याणकारी तथा सौभाग्यवर्धक होती है । आक की जड़ के अभाव में हल्दी की गांठ का पूजन भी कलावा बांधकर किया जा सकता है , किन्तु आक अधिक प्रभावशाली रहता है । रुद्राक्ष का पूजन भी उत्तम होता है।
ऐश्वर्य प्राप्तिः
इसी प्रकार श्री प्राप्ति व धन प्राप्ति के लिए शुद्ध सफेद शंख को तांबे की तश्तरी में लाल वस्त्र पर विराजित करके उसकी नित्य प्रति पूजा करना उत्तम होता है , क्योंकि शंख को लक्ष्मी ही का रूप माना गया है । शंख - पूजन सदा ऐश्वर्य प्रदान करने वाला होता है ।
यह समस्त जानकारी आपको
दुर्गा भवानी ज्योतिष केंद्र
के माध्यम से
ज्योतिषाचार्य जितेंद्र सकलानी जी
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