जानिए केतु के रत्न लहसुनिया की विशेषताएं।
केतु - लहसुनिया
गुण व लाभ: लहसुनिया धारण करने से हैजा , मधुमेह , विशुचिका आदि तथा श्वेतप्रदर के रोग नष्ट होते हैं । भ्रमरोग तथा पैरालाइसिस में भी पहनना लाभप्रद होता है ।
परीक्षाः अपने सफेद या चांदी जैसे रंग के सूत के कारण यह बांस के पत्ते , टाक के पत्ते , मोर कण्ठ अथवा बिल्ली की आंख के समान पीला आदि किसी भी रंग का हो , यह सहज ही पहचाना जाता है ।
उपरत्नः लहसुनिया के उपरत्न कर्केतक , श्येनाक्ष , सिंहाक्ष , अलक्षेन्द्र तथा स्वर्ण वैदूर्य आदि हैं । दरियाई लहसुनिया , तुषार लहसुनिया या गोदन्ती भी लहसुनिया के उपरत्न माने जाते हैं ।
धारण - विधिः लहसुनिया शनि या मंगलवार को , शनि की होरा में , हस्त नक्षत्र में धारण करना चाहिए । केतु मंत्र की (ऊँ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं स: केतवे नम: ) कम - से - कम एक माला जपकर गंगाजल आदि से धोने के बाद पूर्व वर्णित विधि से इसको धारण करना चाहिए । धारण करने से पूर्व शुभ - अशुभ की परीक्षा कर लेनी चाहिए । आमतौर पर तीन , पांच या सात रत्ती का लहसुनिया धारण किया जाता है । इसे दाहिने हाथ की मध्यमा में पहनना चाहिए , तथा इसके साथ मोती , मूंगा , पुखराज अथवा माणिक्य को धारण नहीं करना चाहिए । लहसुनिया को अष्टधातु की अंगूठी में अथवा कभी - कभी चांदी । में भी धारण किया जाता है ।
कौन - कब पहने - नियमः केतु ग्रह से सम्बन्धित पीड़ा व रोग होने पर केतु का प्रभाव शुभग्रहों पर होने पर , केतु को अन्तर्दशा या महादशा होने पर , केतु धनु या मीन राशि में हो और जातक भी इन्हीं राशियों का हो तो सामान्यतः लहसुनिया धारण किया जाता हैं ।
रत्न सम्बन्धित कुछ अन्य तथ्य
2 . दूध में निकालकर रत्न को गंगाजल या गुलाब जल से भली प्रकार स्नान कराकर , धूप अगरबत्ती दिखाकर , मंत्र द्वारा अभिमंत्रित कर व ईश्वर से शुभत्व की प्रार्थना के बाद ही पहनना चाहिए । किन्तु उस दिन पंचक या भद्रा न हो।
3. नवरत्नों के अंगूठी पहनने के लिए रत्नों का क्रम व दिशाकोण ग्रहों के अनुसार होना चाहिए।
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