जानिए क्या होता है पुंसवन संस्कार ?



स्त्री में गर्भ के लक्षण स्पष्ट होने पर गर्भस्थ शिशु के उचित विकास के लिए पुंसवन संस्कार किया जाता है । स्त्री के गर्भ में प्राय: तीसरे महीने से शिशु के भौतिक शरीर का निर्माण प्रारंभ हो जाता है। धर्म ग्रंथों में पुंसवन संस्कार के दो प्रमख उद्देश्य बताए गए हैं । पहला उद्देश्य पुत्र प्राप्ति और दूसरा उद्देश्य स्वस्थ , संदर तथा गुणवान संतान की प्राप्ति ।

पुत्र प्राप्ति के संदर्भ में स्मृति संग्रह में लिखा है –

गर्भाद् भवेच्च पुंसूते पुंस्त्वस्य प्रतिपादनम्

अर्थात् :- इस गर्भ से पुत्र ही उत्पन्न हो , इसलिए पुंसवन संस्कार किया जाता है ।




मनुस्मृति 9 / 138  में कहा गया है - पुन्नाम्नो नरकाद्यस्मात् त्रायते पितरं सुतः 

अर्थात् पुम् नामक नरक से जो रक्षा करता है , उसे ' पुत्र ' कहते हैं । 

इसीलिए नरक से बचने के लिए मनुष्य पुत्र - प्राप्ति की कामना करता है ।

वेद - मंत्रों की अलौकिक शक्ति में विश्वास रखकर पुंसवन संस्कार करने पर स्त्री के भावप्रधान मन में पुत्रभाव का संकल्प उत्पन्न होता है । जब तीन माह का गर्भ हो तो लगातार नौ दिन तक सुबह या रात्रि में शयन के समय स्त्री को नीचे लिखा मंत्र अर्थ सहित पढ़कर सुनाया जाए तथा मन में ' पुत्र ही होगा ' ऐसा बार - बार दुद निश्चय एवं पूर्ण श्रद्धा के साथ संकल्प किया जाए तो पुत्र ही उत्पन्न होता है ।

पुमानग्निः पुमानिन्द्रः पुमान् देवो बृहस्पतिः ।
पुमांसं पुत्रं विन्दस्व तं पुमान्नु जायताम् ॥


अर्थात् अग्नि देवता पुरुष है . देवराज इंद्र भी पुरुष है तथा देवताओं के गुरु बृहस्पति भी पुरुष हैं , तुझे भी पुरुषत्व गुणों वाला पुत्र ही उत्पन्न हो ।

वैज्ञानिक दृष्टि से नारी डिंबाणु में 22 जोड़े गुणसूत्र होते हैं , जिनमें सभी xx होते है । पुरुष शुक्राणु में 23 जोड़े गुणसूत्र होते हैं , जिनमें से 22 जोड़े x x और एक जोड़ा x y होता है । यदि स्त्री के x गुणसूत्र से पुरुष का x गुणसूत्र मिलता है तो संतान लड़की होती है और यदि स्त्री के x गुणसूत्र से पुरुष का y गुणसूत्र मिलता है तो संतान लड़का होती है । गुणसूत्रों का यह संयोजन संभोग काल में ही हो जाता है तथा इसे किसी भी स्थिति में बाद में नहीं बदला जा सकता । अत: दो या तीन महीने बाद । यह तो पता किया जा सकता है कि गर्भ में संतान लड़का है या लड़की किंतु किसी भी प्रकार इसको बदला नहीं जा सकता ।

पारस्कर गृह्यसूत्र के अनुसार यह संस्कार उस समय किया जाता है जब गर्भ दो या तीन मास का हो । वस्तुतः यह संस्कार स्त्री - पुरुष की पुत्र प्राप्ति की इच्छा को पुरा करने के उद्देश्य से बतलाया गया है । यदि यह संस्कार विधिवत् किया जाए तो स्त्री पुरुष को निश्चय ही मनोनुकूल संतान प्राप्ति होती है ।


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