जानिए श्राद्ध पक्ष में पितरों से जुड़ी धारणाएं एवं कुछ विशेष बातें ।

श्राद्ध पक्ष को लेकर लोगों के मन में आम तौर पर यह धारणा बनी हुई है कि यह अशुभ समय होता है और इस दौरान कोई भी नया काम करने या फिर कोई भी नई चीज खरीदना शुभ नहीं माना जाता। ऐसा करने से पितृगण नाराज हो जाते हैं। यही वजह है कि इस धारणा के कई व्‍यापार और उद्योग धंधे पितृ पक्ष के दिनों में मंदे पड़ जाते हैं। वहीं शास्‍त्रों में भी इस बात का उल्‍लेख कहीं नहीं मिलता है कि पितृ पक्ष में खरीदारी करने से अशुभ परिणाम प्राप्‍त होते हैं। जानते हैं पितृ पक्ष को लेकर क्‍या हैं मान्‍यताएं और क्‍या कहते हैं विद्वान…



1 अशुभ मानने की वजह

कुछ विद्वानों का मानना है कि पितृ पक्ष में हमारे पूर्वज धरती का रुख करते हैं। ऐसे में हमें उनकी सेवा में और श्राद्ध कर्म में मन लगाना चाहिए। सेवा करने की बजाए यदि हम नई वस्‍तु की ओर ध्‍यान लगाएं तो हमारे पितृ आहत हो सकते हैं। यही वजह है कि पितृ पक्ष में नई वस्‍तु नहीं खरीदी जाती।

2 पितरों का ऋण चुकाने का वक्‍त

श्राद्ध पक्ष को पितरों के प्रति समर्पण भाव से देखा जाता है। 16 दिनों की अवधि को पितरों का ऋण चुकाने के नजरिए से देखा जाता है। श्राद्ध करके, तर्पण करके, दान पुण्‍य करके उनका कर्ज उतारने का प्रयास करते हैं। ऐसे में यह माना जाता है कि हम पहले से ही पितरों के कर्ज में डूबे हैं और कर्ज में डूबा व्‍यक्ति नई वस्‍तु कैसे खरीद सकता है।

3 इस वजह से मानते हैं शुभ

कुछ विद्वान ऐसे भी हैं जो पितृपक्ष में नई वस्‍तु की खरीद को अशुभ नहीं मानते। उनका यह मानना है कि पितृपक्ष में हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं और आशीर्वाद देते हैं। ऐसे में हमें नई वस्‍तुओं के साथ देखकर भला वे दुखी क्‍यों होंगे

4 गणेश आराधना के बाद

श्राद्ध पक्ष की शुरुआत गणेश चतुर्थी के बाद और माता दुर्गा की पूजा से पहले होती है। तो अगर श्राद्ध पक्ष के आरंभ से पहले हम गणपति की पूजा कर चुके हैं तो वह अशुभ कैसे हो सकती हैं

5 मां दुर्गा का भी साथ

श्राद्ध पक्ष के पीछे मां दुर्गा भी खड़ी हैं तो इसे अशुभ मानने की कोई वजह नहीं है। श्राद्ध पक्ष में हमारे पूर्वज सूक्ष्‍म रूप में हमारे आस-पास ही रहते हैं और हमें आशीष देते हैं।

श्राद्ध का अर्थ : - ‘श्रद्धया दीयते यत् तत् श्राद्धम्।’

‘श्राद्ध’ का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए। पितरों के लिए श्रद्धापूर्वक किए गए पदार्थ-दान (हविष्यान्न, तिल, कुश, जल के दान) का नाम ही श्राद्ध है। श्राद्धकर्म पितृऋण चुकाने का सरल व सहज मार्ग है। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितरगण वर्षभर प्रसन्न रहते हैं।
श्राद्ध-कर्म से व्यक्ति केवल अपने सगे-सम्बन्धियों को ही नहीं, बल्कि ब्रह्मा से लेकर तृणपर्यन्त सभी प्राणियों व जगत को तृप्त करता है। पितरों की पूजा को साक्षात् विष्णुपूजा ही माना गया है।

श्राद्ध की वस्तुएं पितरों को कैसे मिलती हैं?

प्राय: कुछ लोग यह शंका करते हैं कि श्राद्ध में समर्पित की गईं वस्तुएं पितरों को कैसे मिलती है? कर्मों की भिन्नता के कारण मरने के बाद गतियां भी भिन्न-भिन्न होती हैं–कोई देवता, कोई पितर, कोई प्रेत, कोई हाथी, कोई चींटी, कोई वृक्ष और कोई तृण बन जाता है। तब मन में यह शंका होती है कि छोटे से पिण्ड से अलग-अलग योनियों में पितरों को तृप्ति कैसे मिलती है? इस शंका का स्कन्दपुराण में बहुत सुन्दर समाधान मिलता है।
एक बार राजा करन्धम ने महायोगी महाकाल से पूछा–’मनुष्यों द्वारा पितरों के लिए जो तर्पण या पिण्डदान किया जाता है तो वह जल, पिण्ड आदि तो यहीं रह जाता है फिर पितरों के पास वे वस्तुएं कैसे पहुंचती हैं और कैसे पितरों को तृप्ति होती है?’
भगवान महाकाल ने बताया कि–विश्वनियन्ता ने ऐसी व्यवस्था कर रखी है कि श्राद्ध की सामग्री उनके अनुरुप होकर पितरों के पास पहुंचती है। इस व्यवस्था के अधिपति हैं अग्निष्वात आदि। पितरों और देवताओं की योनि ऐसी है कि वे दूर से कही हुई बातें सुन लेते हैं, दूर की पूजा ग्रहण कर लेते हैं और दूर से कही गयी स्तुतियों से ही प्रसन्न हो जाते हैं। वे भूत, भविष्य व वर्तमान सब जानते हैं और सभी जगह पहुंच सकते हैं।
पांच तन्मात्राएं, मन, बुद्धि, अहंकार और प्रकृति–इन नौ तत्वों से उनका शरीर बना होता है और इसके भीतर दसवें तत्व के रूप में साक्षात् भगवान #पुरुषोत्तम उसमें निवास करते हैं। इसलिए देवता और पितर
#गन्ध व #रसतत्व से तृप्त होते हैं। #शब्दतत्व से रहते हैं और #स्पर्शतत्व को ग्रहण करते हैं। #पवित्रता से ही वे प्रसन्न होते हैं और वर देते हैं।

पितरों का आहार है अन्न-जल का #सारतत्व!!!!

जैसे मनुष्यों का आहार अन्न है, पशुओं का आहार तृण है, वैसे ही पितरों का आहार अन्न का सार-तत्व (गंध और रस) है। अत: वे अन्न व जल का सारतत्व ही ग्रहण करते हैं। शेष जो स्थूल वस्तु है, वह यहीं रह जाती है।

किस रूप में पहुंचता है पितरों को आहार ?

नाम व गोत्र के उच्चारण के साथ जो अन्न-जल आदि पितरों को दिया जाता है, विश्वेदेव एवं अग्निष्वात (दिव्य पितर) हव्य-कव्य को पितरों तक पहुंचा देते हैं। यदि पितर देवयोनि को प्राप्त हुए हैं तो यहां दिया गया अन्न उन्हें ‘#अमृत’ होकर प्राप्त होता है। यदि गन्धर्व बन गए हैं तो वह अन्न उन्हें #भोगों के रूप में प्राप्त होता है।
यदि पशुयोनि में हैं तो वह अन्न तृण के रूप में प्राप्त होता है। नागयोनि में वायुरूप से, यक्षयोनि में पानरूप से, राक्षसयोनि में आमिषरूप में, दानवयोनि में मांसरूप में, प्रेतयोनि में रुधिररूप में और मनुष्य बन जाने पर भोगने योग्य तृप्तिकारक पदार्थों के रूप में प्राप्त होता हैं।
जिस प्रकार बछड़ा झुण्ड में अपनी मां को ढूंढ़ ही लेता है, उसी प्रकार नाम, गोत्र, हृदय की भक्ति एवं देश-काल आदि के सहारे दिए गए पदार्थों को मन्त्र पितरों के पास पहुंचा देते हैं। जीव चाहें सैकड़ों योनियों को भी पार क्यों न कर गया हो, तृप्ति तो उसके पास पहुंच ही जाती है।
श्रीराम द्वारा श्राद्ध में आमन्त्रित ब्राह्मणों में सीताजी ने किए राजा दशरथ व पितरों के दर्शन!!!!!
श्राद्ध में आमन्त्रित ब्राह्मण पितरों के प्रतिनिधिरूप होते हैं। एक बार पुष्कर में श्रीरामजी अपने पिता दशरथजी का श्राद्ध कर रहे थे। रामजी जब ब्राह्मणों को भोजन कराने लगे तो सीताजी वृक्ष की ओट में खड़ी हो गयीं। ब्राह्मण-भोजन के बाद रामजी ने जब सीताजी से इसका कारण पूछा तो वे बोलीं–
‘मैंने जो आश्चर्य देखा, उसे आपको बताती हूँ। आपने जब नाम-गोत्र का उच्चारणकर अपने पिता-दादा आदि का आवाहन किया तो वे यहां ब्राह्मणों के शरीर में छायारूप में सटकर उपस्थित थे। ब्राह्मणों के शरीर में मुझे अपने श्वसुर आदि पितृगण दिखाई दिए फिर भला मैं मर्यादा का उल्लंघनकर वहां कैसे खड़ी रहती; इसलिए मैं ओट में हो गई।’
श्राद्ध में तुलसी की महिमा
तुलसी से पिण्डार्चन किए जाने पर पितरगण प्रलयपर्यन्त तृप्त रहते हैं। तुलसी की गंध से प्रसन्न होकर गरुड़ पर आरुढ़ होकर विष्णुलोक चले जाते हैं।
पितर प्रसन्न तो सभी देवता प्रसन्न!!!!!
श्राद्ध से बढ़कर और कोई कल्याणकारी कार्य नहीं है और वंशवृद्धि के लिए तो पितरों की आराधना ही एकमात्र उपाय है—
आयु: पुत्रान् यश: स्वर्ग कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम्।
पशुन् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात्।।

(यमस्मृति, श्राद्धप्रकाश)

यमराजजी का कहना है कि–
–श्राद्ध-कर्म से मनुष्य की आयु बढ़ती है।
–पितरगण मनुष्य को पुत्र प्रदान कर वंश का विस्तार करते हैं।
–परिवार में धन-धान्य का अंबार लगा देते हैं।
–श्राद्ध-कर्म मनुष्य के शरीर में बल-पौरुष की वृद्धि करता है और यश व पुष्टि प्रदान करता है।
–पितरगण स्वास्थ्य, बल, श्रेय, धन-धान्य आदि सभी सुख, स्वर्ग व मोक्ष प्रदान करते हैं।
–श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने वाले के परिवार में कोई क्लेश नहीं रहता वरन् वह समस्त जगत को तृप्त कर देता है।

श्राद्ध न करने से होने वाली हानि ?

शास्त्रों में श्राद्ध न करने से होने वाली हानियों का जो वर्णन किया गया है, उन्हें जानकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। शास्त्रों में मृत व्यक्ति के दाहकर्म के पहले ही पिण्ड-पानी के रूप में खाने-पीने की व्यवस्था कर दी गयी है। यह तो मृत व्यक्ति की इस महायात्रा में रास्ते के भोजन-पानी की बात हुई। परलोक पहुंचने पर भी उसके लिए वहां न अन्न होता है और न पानी। यदि सगे-सम्बन्धी भी अन्न-जल न दें तो भूख-प्यास से उसे वहां बहुत ही भयंकर दु:ख होता है।
आश्विनमास के पितृपक्ष में पितरों को यह आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें अन्न-जल से संतुष्ट करेंगे; यही आशा लेकर वे पितृलोक से पृथ्वीलोकपर आते हैं लेकिन जो लोग–पितर हैं ही कहां?–यह मानकर उचित तिथि पर जल व शाक से भी श्राद्ध नहीं करते हैं, उनके पितर दु:खी व निराश होकर शाप देकर अपने लोक वापिस लौट जाते हैं और बाध्य होकर श्राद्ध न करने वाले अपने सगे-सम्बधियों का रक्त चूसने लगते हैं। फिर इस अभिशप्त परिवार को जीवन भर कष्ट-ही-कष्ट झेलना पड़ता है और मरने के बाद नरक में जाना पड़ता है।
मार्कण्डेयपुराण में बताया गया है कि जिस कुल में श्राद्ध नहीं होता है, उसमें दीर्घायु, नीरोग व वीर संतान जन्म नहीं लेती है और परिवार में कभी मंगल नहीं होता है।

धन के अभाव में कैसे करें श्राद्ध ?

ब्रह्मपुराण में बताया गया है कि धन के अभाव में श्रद्धापूर्वक केवल शाक से भी श्राद्ध किया जा सकता है। यदि इतना भी न हो तो अपनी दोनों भुजाओं को उठाकर कह देना चाहिए कि मेरे पास श्राद्ध के लिए न धन है और न ही कोई वस्तु। अत: मैं अपने पितरों को प्रणाम करता हूँ; वे मेरी भक्ति से ही तृप्त हों।
पितृपक्ष पितरों के लिए पर्व का समय है, अत: प्रत्येक गृहस्थ को अपनी शक्ति व सामर्थ्य के अनुसार पितरों के निमित्त श्राद्ध व तर्पण अवश्य करना चाहिए।

उपर्युक्त लिखे गए उल्लेख सभी विद्वतजनों के पूर्व लिखित उल्लेखों को मिश्रित करके
दुर्गा भवानी ज्योतिष केंद्र
ज्योतिषाचार्य जितेंद्र सकलानी

द्वारा लिखा गया यदि किसी भी प्रकार से कोई त्रुटि रह गई हो तो संस्था कर बद्ध होकर आपसे क्षमा याचना करती है।
🙏🙏🙏🙏

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